भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन(bharat me european ka aagman)
पुर्तगाली
- भारत आने वाली यूरोपीय कंपनियों में पुर्तगाली प्रथम थे
- पोप एलेक्जेंडर IV ने 1492 ई. में एक आज्ञापत्र के द्वारा पुर्तगाल को समुद्री व्यापार का एकाधिकार सौंपा
- पुर्तगाली यात्री वास्कोडिगामा ने 8 जुलाई 1497 को भारत की अपनी खोज यात्रा आरम्भ की
- वास्कोडिगामा एक गुजराती पथ प्रदर्शक अब्दुल मजीद की सहायता से भारत के पश्चिमी तट पर स्थित कालीकट बंदरगाह पर 20 मई 1498 ई. को पहुंचा ,इस तरीके से वास्कोडिगामा ने भारत के लिए एक नए समुद्री मार्ग की खोज की
- कालीकट के शासक जमोरिन ने वास्कोडिगामा का स्वागत किया
- वास्कोडिगामा ने काली मिर्च के व्यापार से 60 गुना अधिक मुनाफा बनाया
- पुर्तगालियों ने भारत में अपनी पहली कोठी कोचीन में स्थापित की
- 1509 ई. में अलफांसो-डी-अलबुकर्क गवर्नर बनके आया ,इसे भारत में पुर्तगाली साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक भी माना जाता है
- अलबुकर्क ने 1510 ई. में बीजापुर के सुल्तान यूसुफ आदिल शाह से गोवा छीन लिया और उसे अपनी राजधानी बनाया
- स्थापत्य कला में गोथिक कला का विकास हुआ
- पुर्तगालियों ने ही गोवा में 1556 ई. में भारत में प्रथम प्रिंटिंग प्रेस की भी स्थापना की थी
- तम्बाकू, आलू की खेती और जहाज निर्माण ये भी भारत को पुर्तगालियों की ही देन है
डच
- 1602 ई. में डच (हॉलैण्ड ) ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना की गई
- 1605 ई. में डचों ने अपनी सबसे पहली फैक्ट्री मूसलीपट्टम में स्थापित की
- डचों ने पश्चिमी तट पर व्यापार करने के लिए मुगल बादशाह जहांगीर से फरमान जारी करवाया
- 18 वीं सदी की शुरुआत में डचों के व्यापारिक कार्य कलापों का अंत होना शुरु हो गया अंतत: 1759 में वेदरा के युध्द में अंग्रेजों द्वारा पराजित होने पर इनकी गतिविधियां पूर्णत: समाप्त हो गई
अंग्रेजों का भारत आगमन
- व्यापारियों के एक समूह जिसे मर्चेट एडवेंचरस कहा जाता था इनके द्वारा 1599 ई. में ईस्ट इण्डिया कम्पनी का गठन किया गया
- 1600 ई. में ब्रिट्रेन की महारानी एलिजाबेथ के द्वारा कम्पनी को एक चार्टर दिया गया जिसमें कम्पनी को पूर्वी देशों के साथ 15 वर्षो के लिए व्यापार करने का एकाधिकार प्रदान किया
- व्यापारिक रियायतें प्राप्त करने के लिए हेक्टर नामक जहाज पर कप्तान हॉकिंस 1608 ई. में सूरत आया
- हॉकिंस ने जहाँगीर के दरबार में जाकर फारसी भाषा में बात की जहाँगीर ने उससे प्रभावित होकर उसे इंग्लिश खाँ की उपाधि दी और 400 का मनसब भी दिया
- सन 1611 में मसूलीपट्टनम आन्ध्रा-प्रदेश में ब्रिट्रिश कम्पनी की अपनी पहली फैक्ट्री स्थापित हुई
- 1613 ई. में जहाँगीर ने एक आज्ञा पत्र द्वारा अंग्रेजों को सूरत में स्थायी रूप से एक कोठी स्थापित करने की अनुमति प्रदान की
- 1615 में इंग्लैड के राजा जेम्स प्रथम का राजदूत सर टॉमस रो जहाँगीर के दरबार में आया इसका उद्देश्य व्यापारिक संधि करना था इसने साम्राज्य के सभी भागों में व्यापारिक कोठियां स्थापित करने की अनुमति प्राप्त कर ली
- 1623 ई. में कम्पनी ने सूरत, अहमदाबाद, आगरा, कन्नौज और बडौदा में फैक्ट्री स्थापित कर ली
- 1717 में जॉन सुमरन का शिष्ट मण्डल मुगल सम्राट फरुखशियर के दरबार में पहुँचा इस शिष्ट मण्डल का एक सदस्य विलियम हेमिल्टन जो कि चिकित्सक था उसने फरुख्शियर का इलाज किया फरुख्शियर ने प्रसन्न होकर 1717 ई. में कम्पनी के नाम एक फरमान जारी किया जिसे कम्पनी का मैग्नाकार्टा या महाधिकार पत्र भी कहा जाता है
- 1717 के फरमान में अंग्रेजों को 3,000 वार्षिक कर के बदले बंगाल में मुक्त व्यापार की अनुमति दी गयी
- 1717 के फरमान में अंग्रेजों को किराये पर कलकत्ता के आस-पास की जमीन लेने की अनुमति दी गई
- 1717 के फरमान में अंग्रेजों को हैदराबाद के समूचे सूबे में उन्हें जो पहले से चुंगी की छूट मिली थी वह कायम रहे
- 1717 के फरमान में अंग्रेजों को 10,000रु. वार्षिक कर के बदले उन्हें चुंगी देने से छूट मिले
- 1717 के फरमान में अंग्रेजों को बम्बई में कम्पनी द्वारा ढाले गये सिक्कों को सम्पूर्ण राज्य में चलाने की अनुमति दे दी गई
डेनिश
- 1616 ई. में डेनिश कम्पनी का भारत आगमन हुआ
- इसकी पहली फैक्ट्री तंजौर के त्रावन कौर में 1620 ई. में स्थापित हुई
- बंगाल के श्रीरामपुर में 1676 ई. में इनकी फैक्ट्री स्थापित हुयी
- श्रीरामपुर डेनिश कम्पनी की गतिविधियों का प्रमुख केंद्र था
- इन्होने अपनी भारतीय बस्तियों को अंग्रेजो को 1845 ई. में बेच दिया
फ्रांसिसियों का आगमन
- फ्रेंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना 1664 ई. में फ्रांसिसी सम्राट लुई 14वें के मंत्री कोलबर्ट द्वारा की गयी
- इस कम्पनी का मूल नाम ‘ कम्पनी द इंद ओरिएंतल’ था
- इसकी पहली फैक्ट्री 1668 ई. में सूरत में फ्रैंको कैरो के द्वारा स्थापित की गई
- मर्कारा ने गोलकुण्डा के सुल्तान से अनुमति ले कर मूसलीपट्टम में 1669 ई. में दूसरी फैक्ट्री स्थापित की
- फ्रेंच कम्पनीयों का मुख्यालय पंण्डिचेरी था
- तंजौर के नबाब ने कोरो मण्डल तट पर स्थित कलीकट फ्रांसिसियों को 1639 ई. में उपहार स्वरूप दे दिया
- 1721 ई. में फ्रांसिसियों ने मॉरिशियस पर अधिकार कर लिया और 1725 ई. में मालावाड तट पर स्थित माही पर भी अधिकार कर लिया
- 1742 ई. में डूप्ले गवर्नर बन कर आया,डूप्ले ने भारत में अपना राज्य स्थापित करना चाहा परिणाम स्वरूप फ्रांसिसी और अंग्रेजों के मध्य संघर्ष शुरु हो गया
- फ्रांसिसी और अंग्रेजी कम्पनियों के बीच दक्षिण भारत के कर्नाटक क्षेत्र में कुल तीन संघर्ष हुए जिसे आंग्ल फ्रांसिसी संघर्ष कहा गया
- प्रथम कर्नाटक युध्द 1746 से 1748 तक चला ये ऑस्ट्रिया के अधिकार युध्द जो कि 1740में प्रारम्भ हुआ था उसी का विस्तार था
- एक्सला सापेल की संधि 1748 द्वारा यूरोप में फ्रांस एवं बिट्रेन की बीच युध्द समाप्त हो गया इसके साथ ही भारत में प्रथम कर्नाटक युध्द समाप्त हो गया
- कर्नाट्क द्वितीय युध्द 1749 से 1754 तक चला ये युध्द हैदराबाद, कर्नाटक और तंजौर के उत्तराधिकार के प्रश्न पर लडा गया
- दिसंबर, 1754 ई० में अंग्रेज एवं फ्रांसीसियों के बीच पांडिचेरी की संधि हुई। इसके तहत दोनों पक्षों ने भारतीय राजाओं के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का आश्वासन दिया।
- कर्नाटक तृतीय युध्द 1758 ई. से 1763 ई. तक चला, ये युध्द यूरोपीय संघर्ष का विस्तार मात्र था
- 1760 ई. में सर आयरकूट की अंग्रेज सेना ने वांडीवाश युध्द में अंग्रेजी सेना को बुरी तरह परास्त कर दिया
- वांडिवाश युध्द के पश्चात फ्रांसिसी पाण्डुचेरी तक सीमित रह गये
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