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हिंदी साहित्य का इतिहास नोट्स

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दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम Hindi Sahitya Ka Itihas टॉपिक का एक विस्तृत अध्ययन करेंगे , आज के इस लेख में हम हिंदी साहित्य का इतिहास, हिन्दी साहित्य का नामकरण, हिंदी साहित्य का काल विभाजन, आदिकाल, भक्ति काल, रीति काल, आधुनिक काल, हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की प्रमुख समस्याएं, हिन्दी साहित्य के प्रमुख कवि,लेखक और उनकी रचनाएँ, आदि काल के प्रमुख कवि, लेखक और उनकी रचनाएँ, भक्तिकाल के प्रमुख कवि, लेखक और उनकी रचनाएँ, रीति काल के प्रमुख कवि, लेखक और उनकी रचनाएँ, आधुनिक काल के प्रमुख कवि, लेखक और उनकी रचनाएँ के बारे में पढ़ेंगे एवं अंत में हिंदी साहित्य का इतिहास Questions and Answers पर भी एक नजर डालेंगे

हिन्दी साहित्य का इतिहास विभिन्न लेखकों द्वारा वर्गीकृत किया गया जिनमें डॉ. नागेन्द्र ,आचार्य रामचंद्र शुक्ल,रामकुमार वर्मा एवं बाबू श्याम सुन्दर दास  का नाम प्रमुखता से लिया जाता है | आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित, हिन्दी साहित्य का इतिहास सर्वाधिक प्रामाणिक माना जाता हैं

दोस्तों लेख़ के अंत में आप हिंदी साहित्य का इतिहास नोट्स PDF DOWNLOAD कर सकते हैं

तो चलिए दोस्तों शुरू करते हैं

हिंदी साहित्य का इतिहास

हिंदी साहित्य का इतिहास लिखने की सर्वप्रथम कोशिश एक फ्रेंच विद्वान् ने की जिनका नाम गार्सा द तासी था, इनके फ्रेंच भाषा में लिखे ‘इसवार द ला सितरेत्युर रहुई ए हिन्दुस्तानी’ नामक ग्रन्थ में हिंदी तथा उर्दु भाषा के कवियों का वर्णन है, परन्तु इस प्रयास में काल विभाजन एवं उनका नामकरण नहीं किया गया है, काल विभाजन एवं  नामकरण के बारे में प्रयास करने का श्रेय जॉर्ज ग्तियर्सन को जाता है, इस बारे में एक और उल्लेखनीय प्रयास मिश्र बंधुओ द्वारा किया गया ,पर आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा 1929 में दिया गया हिंदी साहित्य का इतिहास सर्वाधिक प्रमाणिक एवं सरल माना जाता है

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हिंदी भाषा का विकास संस्कृत भाषा से हुआ हैं अवधी, मागधी, अर्धमागधी भाषा साहित्य को हिन्दी के प्रारंभिक साहित्य के रूप में मान्य है।

हिंदी में तीन प्रकार के साहित्य आते हैं – गद्य, पद्य और चंपू । गद्य और पद्य के मिश्रित रूप को चंपू कहते है। हिंदी साहित्य की शुरुआत पद्य के माध्यम से हुई, गद्य का विकास बाद में हुआ

हिंदी भाषा का प्रथम कवि सरहपाद को माना जाता हैं, हिंदी खड़ी बोली गद्य की प्रथम रचना गंग कवि द्वारा रचित चन्द छन्द बरनन की महिमा को माना जाता है, हिंदी साहित्य का प्रथम महाकाव्य चन्दबरदाई द्वारा रचित पृथ्वीराज रासो है, हिंदी का प्रथम उपन्यास श्रीनिवास दास द्वारा रचित परीक्षा गुरु है |

हिन्दी साहित्य का नामकरण

हिंदी साहित्य के नामकरण  में मुख्यतः आरम्भिक काल (आदिकाल) तथा रीतिकाल को लेकर विद्वानों के बीच मतभेद देखा जाता है 

कुछ प्रमुख विद्वानों द्वारा विभिन्न काल का नामकरण निम्न रूप से किया गया है 

10-14वी शताब्दी के कालखंड का नामकरण 

विद्वान्  नामकरण 
जॉर्ज ग्तियर्सन चारण काल
मिश्र बंधु आरम्भिक काल
आचार्य रामचंद्र शुक्ल आदिकाल (वीरगाथा काल)
राहुल सांकृत्यायन सिद्ध सामंत काल 
बाबू श्यामसुंदर दास आदियुग
आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र आदिकाल
डॉ. रामकुमार वर्मा सन्धिकाल
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी आदिकाल
डॉ. हरिश्चन्द्र वर्मा संक्रमण काल
महावीर प्रसाद द्विवेदी बीजवपन काल

14-17वी शताब्दी के कालखंड का नामकरण 

इस काल के लिए भक्तिकाल  नामकरण सर्वमान्य है 

17-19वी शताब्दी के कालखंड का नामकरण 

इस काल के नामकरण को लेकर विद्वानों के बीच काफी मतभेद है 

विभिन्न विद्वान् एवं उनके द्वारा किया गया नामकरण 

विद्वान् नामकरण 
आचार्य रामचंद्र शुक्ल उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल)
डॉ. रामकुमार वर्मा रीतिकाल
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी प्रेममार्गी काल
मिश्र बंधु अलंकृत काल

19वी शताब्दी से अब तक के कालखंड का नामकरण 

विभिन्न विद्वान् एवं उनके द्वारा किया गया नामकरण

विद्वान् नामकरण 
आचार्य रामचंद्र शुक्ल गद्य काल
बाबू श्यामसुंदर दास आधुनिक युग
आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र आधुनिक काल
डॉ. हरिश्चन्द्र वर्मा आधुनिकतावादी चेतना काल

हिंदी साहित्य का काल विभाजन 

हिन्दी-साहित्य को चार कालों में विभाजित किया गया है क्रमशः 

1.आदिकाल (1400 ईस्वी पूर्व)

2.भक्ति काल (1375 से 1700)

3.रीति काल (संवत 1700 से 1900)

4.आधुनिक काल (1850 ईस्वी के पश्चात)

आदिकाल

संवत 1050 से 1375 (सन  993 से 1318 ईस्वी तक )

1400 ईस्वी पूर्व से पहले का काल हिन्दी साहित्य में  आदिकाल माना जाता है ।आदिकालीन काव्यों में युद्ध का सजीव वर्णन किया गया है। इस काल में चंदबरदाई द्वारा रचित ‘पृथ्वीराजरासो’ को हिंदी साहित्य का प्रथम महाकाव्य माना जाता है | हिन्दी साहित्य के आदिकाल को वीरगाथा काल, चारणकाल, सिद्ध सामन्त युग, बीजवपन काल, वीरकाल आदि नामों से पुकारा गया है । इस काल में एक तरफ संस्कृत के ऐसे बड़े कवि हुए जिनकी रचनाएँ काव्य-परम्परा की चरम पर पहुँच गयी तो दूसरी ओर अपभ्रंश के ऐसे  कवि हुए जो सरल एवं सहज भाषा में संक्षिप्त शब्दों में भावो को प्रकट कर रहे थे। इस काल में सिद्ध, नाथ,जैन साहित्य तथा चारण काव्यो का निर्माण हुआ ।आदिकालीन साहित्य में शृंगार व वीर रस का सर्वाधिक प्रयोग हुआ है |आदिकालीन साहित्य में डिंगल-पिंगल भाषा का  प्रयोग  रासो साहित्य में हुआ है,अपभ्रंश व राजस्थानी भाषा के मिले-जुले रूप को डिंगल कहते हैं और अपभ्रंश व ब्रज भाषा के मिले जुले-रूप को पिंगल कहते हैं ।

आदिकालीन साहित्य को तीन भागों में बाँटा गया है- 

धार्मिक साहित्य लौकिक साहित्य रासो साहित्य
सिद्ध साहित्य ढोला मारु रा दूहा खुमाण रासो
जैन साहित्य विद्यापति पदावली बीसलदेव रासो
नाथ साहित्य राउल वेल विजयपाल रासो
वर्ण रत्नाकर हम्मीर रासो
उक्ति व्यक्ति प्रकरण पृथ्वीराज रासो
खुसरो काव्य परमाल रासो
वसंत विलास

भक्ति काल

संवत 1375 से 1700 तक  (1318 से 1643 ईस्वी तक )

ये काल मुख्यत: भक्ति भावना को प्रदर्शित करता है। इस काल में दो काव्यधारा मिलती है

1.निर्गुण भक्तिधारा 

2.सगुण भक्तिधारा

निर्गुण भक्तिधारा 

निर्गुण भक्तिधारा के दो हिस्से हैं। पहला

1.संत काव्य:- संत काव्य को ज्ञानाश्रयी शाखा भी कहते हैं। इसके प्रमुख कवि- कबीरदास,नामदेव ,धरमदास ,स्वामी प्राणनाथ ,दरिया साहब ,सुन्दरदास ,जगजीवनदास, नारायणदास, गुरु नानक, मलूकदास, दादूदयाल, रैदास, दयाबाई  आदि हैं।

2.सूफी काव्य:- सूफी काव्य को प्रेमाश्रयी शाखा भी कहते हैं।इसके प्रमुख कवि- मलिक मोहम्मद जायसी, कुतुबन, नूर मोहम्मद, मंझन, शेख नबी, कासिम शाह,असाइत,नसीर,ईश्वरदास आदि हैं।

सगुण भक्तिधारा

भक्तिकाल की दूसरी धारा सगुण भक्तिधारा की दो शाखाएँ है-

1.रामाश्रयी शाखा

2.कृष्णाश्रयी शाखा

रामाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि- तुलसीदास, केशवदास, हृदयराम, प्राणचंद चौहान, अग्रदास, नाभादास, महाराज विश्वनाथ सिंह, रघुनाथ सिंह आदि हैं।

कृष्णाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि – सूरदास, रहीम नंददास, कुम्भनदास, चतुर्भुज दास, कृष्णदास, मीरा, रसखान, छीतस्वामी, गोविन्द स्वामी आदि हैं ।

रीति काल

संवत 1700 से 1900 तक ( सन 1643 से 1843 तक )

Hindi Sahitya Ka Itihas में तीसरा काल रीति काल है |  इस काल को रीतिकाल इसलिए कहा गया क्योंकि इस काल में ज्यादातर कवियों ने श्रृंगार वर्णन, अलंकार प्रयोग, छंद बद्धता आदि के बंधे-बँधाये  रास्ते की कविता की | इस काल को तीन भागों में बांटा गया है- रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त। इस युग के प्रमुख रचनाकार केशव, घनानन्द , बिहारी, भूषण, मतिराम आदि रहे।

आधुनिक काल

सन 1843 से अब तक 

हिन्दी साहित्य के इतिहास में आधुनिक काल को एक विशेष स्थान प्राप्त है ,राम चन्द्र शुक्ल द्वारा इस काल को गद्य काल कहा ,इस काल में गद्य और पद्य में अलग-अलग विचार धाराओं का विकास हुआ। एक ओर इसे पद्य में चार नामों छायावादी युग, प्रगतिवादी युग, प्रयोगवादी युग और यथार्थवादी युग से जाना गया, तो वहीं गद्य में इसे भारतेंदु युग, द्विवेदी युग, रामचंद‍ शुक्ल, प्रेमचंद युग एवं अद्यतन युग का नाम दिया गया।अद्यतन युग की साहित्यिक विधाओं में आत्मकथा, रेडियो नाटक, डायरी, या‌त्रा विवरण, फ़िल्म आलेख , पटकथा लेखन आदि आते है 

हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की प्रमुख समस्याएं

हिंदी साहित्य के लेखन की पहली समस्या इसके प्रारंभ को लेकर है की इसका प्रारंभ कब से माना जाए। शिवसिंह सेंगर, जार्ज ग्रियर्सन और मिश्र बंधुओं ने हिंदी साहित्य का प्रारम्भ सातवीं शती से स्वीकार किया है। राहुल सांस्कृत्यायन ने सातवीं शती के सरहपा को हिंदी का प्रथम कवि माना है।वहीं आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य का आरम्भ दसवीं शताब्दी से माना है, कुछ विद्वानों ने बारहवीं शती से हिंदी का आरम्भ माना है। इसमें डॉ. गणपति चन्द्र का नाम उल्लेखित है डॉ. उदयनारायण तिवारी, डॉ. नामवरसिंह आदि विद्वानों ने हिंदी साहित्य एवं भाषा का आरंभ चैदहवीं शती से माना है। स्पष्ट  है कि हिंदी साहित्य के प्रारम्भ के सम्बन्ध में कई मत प्रचलित हैं। लेकिन 12 वीं शती को विद्वानों ने तर्कसंगत एवं प्रामाणिक माना है।

नामकरण की समस्या

हिंदी साहित्य के इतिहास के लेखन में काल-विभाजन के साथ ही नामकरण की समस्या भी जुड़ी हुई है। इसके लिए कभी प्रमुख साहित्यिक प्रवृत्ति को आधार बनाया जाता है और कभी साहित्यकार को। कभी पद्धति का आश्रय लिया जाता है और कभी विषय का। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने जिन ग्रन्थों के आधार पर आदिकाल को वीरगाथाकाल कहना उपयुक्त समझा था।कुछ अन्य विद्वानों ने उस पर असहमति व्यक्त की और अपने-अपने मत के समर्थन में तर्क प्रस्तुत किये।

काल विभाजन की समस्या

हिंदी साहित्य को आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल तथा आधुनिक काल में विभाजित किया गया है। आचार्य शुक्ल ने अपने हिंदी साहित्य का इतिहास  में इसी विभाजन को माना है। लेकिन बाद में यह काल विभाजन भी विद्वानों के संदेह से परे नहीं रहा  साहित्य की लगातार विकासशील प्रकृति के कारण किसी भी काल को अन्तिम सत्य के रूप में नहीं स्वीकार किया जा सकता है।

मूल्यांकन की समस्या

हिंदी साहित्य के इतिहास के लेखन में मूल्यांकन की समस्या भी एक गंभीर समस्या बनी रहती है। साहित्य के इतिहास में काल-विभाजन और नामकरण से अधिक महत्त्वपूर्ण मूल्यांकन की समस्या होती है। किसी इतिहासकार की वास्तविक शक्ति रचनाओं, रचनाकारों और रचना प्रवृत्तियों के मूल्यांकन से ही प्रकाश में आ पाती है। इसके लिए आवश्यक है कि साहित्यलेखक तटस्थ एवं निष्पक्षतापूर्ण कार्य को सम्पन्न करें।

साहित्यकारों के चयन और निर्धारण की समस्या

हिंदी साहित्य के इतिहास के लेखन में साहित्यकारों के चयन और उनके निर्धारण की भी गंभीर समस्या है। लेखक के सामने  संकट रहता है कि किस रचनाकार की रचना को  अपनी कृति में स्थान दे और किस को नहीं दे। इस कारण काफी त्रुटियाँ होने की संभावना रहती हैं।

हिंदी साहित्य के वैचारिक स्त्रोतों की समस्या

हिंदी साहित्य के इतिहास-लेखन में साहित्य के वैचारिक स्रोतों की भी एक बहुत बड़ी समस्या है। हिंदी साहित्य का विकास बारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से माना जाये पर हिंदी साहित्य में पायी जाने वाली अनेक विचार धाराओं और विशेषताओं के स्रोत पौराणिक भारतीय साहित्य और संस्कृत में निकाले जा सकते हैं जैसे आदिकालीन जैन धर्म से संबंधित रास काव्य परम्परा के स्रोत महावीर, नेमिनाथ आदि जैन तीर्थकारों के उपदेशों में समाहित हैं। वैसे ही जैसे भक्तिकालीन साहित्य में विद्यमान दार्शनिक विचारधारा और रहस्यानुभूति का मूल उद्गम स्रोत उपनिषदों में  है।

इतिहास-लेखन की पद्धति संबंधी समस्या

साहित्य के इतिहास-लेखन की पद्धति भी साहित्य-इतिहास-लेखन की एक समस्या है। हिंदी साहित्य के प्रारम्भिक इतिहास ग्रन्थों में इस प्रकार की समस्या संबंधी परिचय प्राप्त होता हैं।

हिन्दी साहित्य के प्रमुख कवि,लेखक और उनकी रचनाएँ

हर काल के प्रमुख कवि ,लेखक और उनकी रचनाएँ निम्न है

आदि काल के प्रमुख कवि, लेखक और उनकी रचनाएँ

आदि काल के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ निम्न है 

कवि रचनाएँ
स्वयंभू पउम चरिउ
जगनिक परमाल रासो
विद्यापति विद्यापति पदावली
नरपति नाल्ह  बीसलदेव रासो
अमीर ख़ुसरो खालिक बारी

भक्तिकाल के प्रमुख कवि, लेखक और उनकी रचनाएँ

भक्तिकाल के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ निम्न है 

कवि रचनाएँ
रामानंद राम आरती
सूरदास 1.सूरसागर  

2.साहित्य लहरी 

3.भ्रमर गीत

रहीम 1.सतसई(रहीम दोहावली)

2.बरवै नायिका 

3.रहीम रत्नावली

केशव दास राम चन्द्रिका
मीरा बाई 1.नरसी जी का मायरा

2.राग गोविन्द राग

3.सोरठ के पद

तुलसी दास 1.रामचरित मानस

2.कवितावली

3.गीतावली

4.दोहावली

5.कृष्ण गीतावली

6.जानकी मंगल

7.पार्वती मंगल 

8.राम लला नहछू

जायसी 1.पद्मावत

2.अखरावट

रसखान 1.प्रेम वाटिका

2.सुजान रसखान

असाइत हंसावली
कबीर बीजक
नरोत्तम दास सुदामा चरित
मलूक दास रत्न खान

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रीति काल के प्रमुख कवि, लेखक और उनकी रचनाएँ

रीतिकाल के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ निम्न है 

कवि  रचनाएँ 
गोप रामचंद्रभूषण
भिखारी दास 1.विष्णु पुराण भाषा 

2.रास सारांश

चिंतामणि 1.छंद विचार

2.पिगल

3.श्रृंगार मंजरी

रसलीन 1.अंग दर्पण

2.रस प्रबोध

अमीर दास 1.फाग पचीसी 

2.सभा मंडन 

3.श्रीकृष्ण साहित्य सिंधु

याकूब खां रस भूषण
मति राम 1.साहित्य सार 

2.ललित ललाम

माखन छंदविलास
भूषण 1.भूषण उल्लास 

2.दूषण उल्लास

आधुनिक काल के प्रमुख कवि, लेखक और उनकी रचनाएँ

आधुनिक काल के प्रमुख कवि,लेखक और उनकी रचनाएँ निम्न है 

लेखक रचनाएँ
केदारनाथ सिंह 1.रोटी या बैल

2.जमीन पक रही है

कुँवर नारायण 1.कोई दूसरा नहीं

2.चक्रव्यूह

धर्मवीर भारती 1.कनुप्रिया

2.अन्धा युग

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना 1.बांस का पुल

2.गर्म हवाएँ

3.जंगल का दर्द

नरेश मेहता 1.अरण्या

2.शबरी

3.मेरा समर्पित एकांत

हरिवंश राय बच्चन 1.मधुबाला

2.मधुकलश

3.मधुशाला

नागार्जुन 1.तालाब की मछलियाँ

2.खिचड़ी विप्लव देखा हमने

3.युगधारा

गजानन माधव मुक्तिबोध चांद का मुंह टेढ़ा है
भवानी प्रसाद मिश्र 1.बनी हुई रस्सी

2.खुशबू के शिलालेख

अज्ञेय 1.आँगन के पार द्वार

2.कितनी नावों में कितनी बार

रामधारी सिंह दिनकर 1.उर्वशी 

2.कलिंग विजय

3.रश्मिरथी

4.दिल्ली 

5.हारे को हरिनाम

6.परशुराम की प्रतिज्ञा

7.रेणुका

माखनलाल चतुर्वेदी 1.हिमतरंगिणी

2.युग चरण

3.समर्पण

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला 1.अनामिका

2.तुलसीदास

3.गीतिका

4.कुकुरमुत्ता

5.नए पत्ते

6.आराधना

7.पंचवटी प्रसंग

जयशंकर प्रसाद 1.उर्वशी

2.अशोक

3.आँसू

4.कामायनी

5.झरनालहर

महादेवी वर्मा 1.नीरजा

2.यामा

3.रश्मि

4.संध्यागीत

सुभद्रा कुमारी चौहान 1.झांसी की रानी

2.वीरों का कैसा हो बसंत(त्रिधारा और मुकुल)-कविता संग्रह

सुमित्रानंदन पंत 1.वीणा

2.गुंजन

3.युगवाणी

4.युगान्त

5.काला और बूढ़ा चांद

6.लोकायतन

7.ग्रन्थि

भारतेंदु हरिश्चंद्र 1.प्रेम सरोवर

2.प्रेममालिका

3.वेणु गीत

4.वर्षा विनोद

5.प्रेम विनय पचासा

6.प्रेम फुलवारी

अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध 1.पद्यप्रसून

2.वैदेही वनवास

3.रसकलश

4.प्रियप्रवास

मैथिलीशरण गुप्त 1.जयद्रथ वध

2.भारत भारती

3.रंग में भंग

4.पंचवटी

5.साकेत

6.यशोधरा

7.द्वापर

हिंदी साहित्य का इतिहास Questions and Answers | hindisahitya ka itihas Questions and Answers

QUESTION:- हिंदी साहित्य को कितने काल में बांटा गया है?

ANSWER:-हिन्दी-साहित्य को चार कालों में विभाजित किया गया है

1.आदिकाल

2.भक्ति काल

3.रीति काल

4.आधुनिक काल 

QUESTION:-आदिकाल हिंदी साहित्य का कौन सा काल है?

ANSWER:-हिंदी  साहित्य के आरंभिक काल को आदिकाल कहा जाता है 

QUESTION:-हिंदी साहित्य का इतिहास लिखने वाले प्रथम लेखक कौन थे?

ANSWER:-हिंदी साहित्य का इतिहास लिखने वाले प्रथम लेखक एक फ्रेंच विद्वान् थे जिनका नाम गार्सा द तासी था ,इनके फ्रेंच भाषा में लिखे ‘इसवार द ला सितरेत्युर रहुई ए हिन्दुस्तानी’ नामक ग्रन्थ में हिंदी तथा उर्दु भाषा के कवियों का वर्णन है

QUESTION:-साहित्य का मतलब क्या होता है?

ANSWER:-किसी विषय के ग्रन्थ,शास्त्र ,किसी विषय की लिखित रूप में सामग्री 

कोई विशेष विचारधारा की लिपिबद्ध सामग्री या लिपिबद्ध  ज्ञान को उस विषय का साहित्य कहते है 

QUESTION:-हिंदी साहित्य के इतिहास को कितने भागों में बांटा गया है बताइए?

ANSWER:-हिंदी साहित्य के इतिहास को  चार कालों में विभाजित किया गया है

1.आदिकाल

2.भक्ति काल

3.रीति काल

4.आधुनिक काल 

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धन्यवाद

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