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जैन धर्म के सिद्धांत

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आज के टॉपिक में हम जैन धर्म के बारे में अध्ययन करेंगे,हम इस आर्टिकल में जैन धर्म के सिद्धांत , jain dharm ki shiksha, जैन धर्म के संस्थापक,जैन धर्म के 24 तीर्थंकर ,जैन तीर्थंकर प्रतीक-चिन्ह,पार्श्वनाथ,महावीर स्वामी ,जैन धर्म की भाषा,जैन धर्म के त्रिरत्न ,अणुव्रत सिद्धांत,आजीवक संप्रदाय के बारे में जानेंगे,तथा अंत में हम जैन धर्म PDF को Download भी कर सकते है तो चलिए दोस्तों शुरू करते है 

 

जैन धर्म

जैन शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द जिन से हुई है जिसका मतलब है विजेता,जिसने अपनी इंद्रियों को जीत लिया हो

 

जैन धर्म के संस्थापक | जैन धर्म के प्रवर्तक

जैन धर्म के संस्थापक या प्रवर्तक प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ) थें

 जैन धर्म के 24 तीर्थंकर

1

ऋषभदेव  या आदिनाथ या वृषभनाथ

2

अजितनाथ

3

संभवनाथ

4

अभिनंदन

5

सुमतिनाथ

6

पदमप्रभु

7

सुपार्श्वनाथ

8

चंदप्रभु

9

पुष्पदंत या सुविधिनाथ

10

शीतलनाथ

11

श्रेयांशनाथ

12

वसुपूज्य

13

विमलनाथ

14

अनंतनाथ

15

धर्मनाथ

16

शांतिनाथ

17

कुंठुनाथ

18

अरनाथ

19

मल्लिनाथ

20

मुनिसुव्रतनाथ

21

नेमिनाथ

22

अरिष्ठनेमी

23

पार्श्वनाथ

24

महावीर स्वामी

# ऋग्वेद में ऋषभदेव अरिष्ठनेमी का उल्लेख है |

दोस्तों Pdf डाउनलोड करने के लिए Post को अंत तक पढ़े

बौद्ध धर्म के सिद्धांत pdf

 जैन तीर्थंकर प्रतीक-चिन्ह 

 

प्रतीक चिन्ह

तीर्थंकर 

सांड

ऋषभदेव

हाथी

अजितनाथ

घोड़ा

संभवनाथ

स्वास्तिक

सुपार्श्वनाथ

हिरण

शांतिनाथ

नीलकमल

नेमिनाथ

शंख

अरिष्ठनेमी

सर्प

पार्श्वनाथ

सिंह

महावीर स्वामी

कलश

मल्लिनाथ

 

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जैन धर्म के सिद्धांत | जैन धर्म की शिक्षा 

  • जैन मतानुसार संसार नित्य है,संसार शाश्वत है |
  • प्राचीन जैन साहित्य की भाषा अर्धमागधी थी,प्राकृत भाषा का प्रयोग बाद में किया गया 
  • श्रुतंग एक जैन ग्रंथ है जो मागधी भाषा में लिखा गया है
  • जैन-धर्म एवं बौद्ध-धर्म दोनों ही धर्मों ने वेदों की अपौरुषेयता तथा वैदिक कर्मकांडों का विरोध किया।
  • चौदहपूर्वा एक प्राचीनतम जैन ग्रंथ है
  • जैन धर्म में कर्म के सिद्धांत की मान्यता अधिक है,जैन धर्म के अनुसार मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं निर्माता है
  • अच्छे कर्मों से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है
  • जैन धर्म ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं रखता है
  • जैन साहित्य को आगम कहा जाता है

जैन धर्म के त्रिरत्न

जैन धर्म के त्रिरत्न निम्नलिखित हैं:-

1.सम्यक दर्शन

2.सम्यक ज्ञान

3.सम्यक आचरण


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जैन धर्म में गृहस्थों के लिए 5 महाव्रत अणुव्रत(आंशिक रूप से पालन ) सिद्धांत हैं 

जैन धर्म के पांच अणुव्रत | 5 principles of jainism

1.अहिंसाणुव्रत 

2.सत्याणुव्रत 

3.अस्तेयाणुव्रत 

4.बहृमचर्याणुव्रत 

5.अपरिग्रहाणुव्रत 

पार्श्वनाथ

  • पार्श्वनाथ का जन्म 850 ईसा पूर्व में हुआ था
  • पार्श्वनाथ  जैन धर्म के  23 वें तीर्थकर थे |
  • पार्श्वनाथ 30 वर्ष की आयु में संन्यासी बन गए थे
  • पार्श्वनाथ काशी के राजकुमार  थे

 पार्श्वनाथ ने निम्न: चार महाव्रत दिए

1.अहिंसा

2.सत्य

3.अस्तये 

4.अपरिग्रह

  पार्श्वनाथ को सम्मेद पर्वत पर ज्ञान की प्राप्ति हुई थी |


महावीर स्वामी

  • महावीर स्वामी जैन धर्म के 24 वें  तथा अंतिम तीर्थंकर थे
  • महावीर स्वामी का जन्म 599 ईसा पूर्व कुंडग्राम वैशाली में हुआ था |
  • महावीर स्वामी 30 वर्ष की आयु में संन्यासी बन गए थे |महावीर स्वामी के पिता का नाम सिद्धार्थ था, इनके पिता जातृक कुल के प्रमुख थे |
  • महावीर स्वामी माता का नाम विदेहदत्ता(त्रिशला) था,इनकी माता  लिच्छवी  के प्रमुख चेटक की बहन थी |
  • महावीर स्वामी की पत्नी का नाम यशोदा था |
  • महावीर स्वामी की पुत्री का नाम अनोज्जा(प्रियदर्शनी) था
  • अनोज्जा(प्रियदर्शनी) का विवाह जमाली के साथ हुआ था जो कि महावीर स्वामी के प्रथम शिष्य थे |
  • महावीर स्वामी को 12 वर्ष की कठिन तपस्या की पश्चात जृम्भिक के पास ऋजुपालिका नदी के तट पर साल के वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी |
  • ज्ञान की प्राप्ति के बाद महावीर स्वामी जिन,निर्ग्रथ,अर्हत, केवलिन कहलाए गए,केवलिन का अर्थ पूर्ण ज्ञानी से है | निर्ग्रथ संप्रदाय की स्थापना महावीर स्वामी ने की थी |महावीर स्वामी के उपदेशों की भाषा प्राकृत थी |
  • महावीर स्वामी ने पार्श्वनाथ के महाव्रतों में ब्रह्मचर्य को जोड़ दिया इस प्रकार अब ये महाव्रत संख्या में 5 हो गए हैं |
  • चंपा जो कि दधिवाहन की पुत्री थी,प्रथम जैन भिक्षुणी बनी 
  • महावीर स्वामी द्वारा अपनाएं गए मार्ग को अनेकांतवाद या स्यादवाद कहा जाता है |
  • महावीर स्वामी द्वारा अपनाए गए स्यादवाद को  सप्तभंगीनय के नाम से भी जाना जाता है
  • महावीर स्वामी ने 11 गणधर  बनाएं
  • महावीर स्वामी की मृत्यु 527 ईसा पूर्व में राजगीर या राजगृह के पास पावापुरी नामक स्थान पर हुई थी |
  • आर्य सुधर्मा  महावीर स्वामी की मृत्यु के पश्चात संघ के प्रथम अध्यक्ष बने
  • कालांतर में जैन धर्म दो भागों में विभक्त हो गया
  • स्थूलभद्र के अनुयायी श्वेतांबर कहलाए
  • भद्रबाहु के अनुयायी दिगंबर कहलाए
  • श्वेतांबर मत के अनुसार महावीर स्वामी को विवाहित माना जाता है जबकि दिगंबर मतानुसार महावीर स्वामी अविवाहित थे
  • दिगंबर संप्रदाय के अनुसार स्त्रियों के लिए मोक्ष संभव नहीं है
  • यापनीय एक संप्रदाय है जो दिगंबर तथा श्वेतांबर दोनों मान्यताओं का पालन करता है ,इस समुदाय की उत्पत्ति दिगंबर संप्रदाय से हुई मानी जाती है

  • जैन धर्म का एक प्रमुख तीर्थ स्थान श्रवणबेलगोला कर्नाटक में  अवस्थित है,इसका निर्माण चामुंडा राय ने 983 ईस्वी में कराया था यहां बाहुबली(गोमतेश्वर) की विशाल आकार की मूर्ति निर्मित है 
  • बाहुबली ऋषभदेव के पुत्र थे
  • श्रवणबेलगोला में प्रत्येक 12 वर्ष के पश्चात महामस्तकाभिषेक आयोजित किया जाता है
  • माउंट-आबू(राजस्थान) में स्थित दिलवाड़ा जैन मंदिर  एक प्रसिद्ध जैन तीर्थ स्थान है
  • दिलवाड़ा जैन मंदिर का निर्माण सोलंकी शासक भीमदेव प्रथम ने करवाया था 

आजीवक संप्रदाय

मक्खलिगोसाल महावीर स्वामी के शिष्य थे, बाद में महावीर स्वामी से मतभेद के पश्चात इन्होंने आजीवक संप्रदाय की स्थापना की,इनके मत को नियतिवाद कहा जाता है | इसका मतलब भाग्य पर निर्भर करना है |

एक प्रमुख आजीवक आश्रय बराबर गुफाओं में स्थित था |

 प्रथम जैन संगीति

प्रथम जैन संगीति का आयोजन 300 ईसा पूर्व पाटलिपुत्र में स्थूलभद्र की अध्यक्षता में किया गया इस संगीति में जैन ग्रंथो को संकलित किया गया,इस संगीति में भद्रबाहु के अनुयायियों ने भाग नहीं लिया था |


jain dharm question answer |  जैन धर्म के प्रश्न

अब चलिए दोस्तों हम कुछ महत्वपूर्ण जैन धर्म के प्रश्न
पर भी एक नजर डाल लेते है,आप चाहे तो jain dharm question answer in Hindi PDF DOWNLOAD भी कर सकते हैं


Question:- jain dharm ke 24 tirthankar kaun the ? | जैन धर्म के 24 तीर्थंकर कौन थें ?

Answer:-

ऋषभदेव  या आदिनाथ या वृषभनाथ,अजितनाथ,

संभवनाथ,अभिनंदन,सुमतिनाथ,पदमप्रभु,सुपार्श्वनाथ,चंदप्रभु,पुष्पदंत या सुविधिनाथ,शीतलनाथ,श्रेयांशनाथ,वसुपूज्य,विमलनाथ,

अनंतनाथ,धर्मनाथ,शांतिनाथ,कुंठुनाथ,अरनाथ,मल्लिनाथ, मुनिसुव्रतनाथ,नेमिनाथ,अरिष्ठनेमी,पार्श्वनाथ,महावीर स्वामी


Question:- jain dharm ki sthapna kisne ki | जैन धर्म के संस्थापक कौन थे | jainism founder | jainism history

Answer:-

जैन धर्म के संस्थापक प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ) थें


Question:- jain dharma grantha | जैन धर्म ग्रंथ   

Answer:-       श्रुतंग,चौदह-पूर्वा आदि


Question:- जैन धर्म की भाषा क्या थी ?

Answer:-    प्राचीन जैन साहित्य की भाषा अर्धमागधी थी,बाद में प्राकृत भाषा का प्रयोग किया गया


Question:-  जैन शब्द का अर्थ क्या हैं ?

Answer:-  जैन शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द जिन से हुई है जिसका मतलब है विजेता,जिसने अपनी इंद्रियों को जीत लिया हो


Conclusion | निष्कर्ष 

दोस्तों आज के आर्टिकल में हमने जैन धर्म के बारे में विस्तार से जाना , यहाँ हमने जैन धर्म के संस्थापक , जैन धर्म के सिद्धांत , जैन धर्म के 24 तीर्थंकर , जैन तीर्थंकर प्रतीक-चिन्ह , जैन शब्द का अर्थ , jain dharma flag , jain dharma symbol , jain dharm ki shiksha , पार्श्वनाथ , महावीर स्वामी , जैन धर्म के त्रिरत्न , पांच अणुव्रत , 5 principles of jainism , आजीवक संप्रदाय के बारे में जाना

आशा करता हूँ की आपको मेरा प्रयास पसंद आया होगा, यदि आप जैन धर्म PDF Download करना चाहते है तो आप नीचे दिए गए लिंक से jain dharam pdf download कर सकते है

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