इस आर्टिकल में आप भारतीय इतिहास के अंतर्गत bharat me british samrajya ki sthapna aur vistar का विस्तृत अध्ययन करेंगे
भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना और विस्तार की शुरुवात वस्तुतः भारत में अंग्रेजो के आगमन से होती है,अंग्रेजो के भारत आगमन के सम्बन्ध में हमारा नीचे दिया गया आर्टिकल जरुर पढ़े
बाद में प्लासी एवं बक्सर के युद्ध ने भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना और विस्तार का मार्ग पुष्ट किया
इन दोनो युद्ध के बारे में विस्तार से जानने के लिए हम आपको 1717 ई. के बंगाल में ले चलते है
बंगाल राज्य
- मुगल बादशाह फरुख्शियर के शासन काल में 1717 ई. मे मुशीद उली खाँ ने स्वत्रंत बंगाल राज्य की स्थापना की
- 1740 ई. में खेरिया के युद्ध में अली वर्दी खाँ सरफराज खाँ जो कि तत्कालीन नवाब था को पराजित करके बंगाल का नवाब बन गया
- अली वर्दी खाँ ने यूरोपियंस की तुलना मधुमक्खियों से की थी
- 1756 ई. में अली वर्दी खाँ की मृत्यु हो गयी उसके बाद उसकी छोटी बेटी का पुत्र सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना
- सिराजुद्दौला ने 20 जून 1756 में कलकत्ता पर आक्रमण किया और फोर्ट विलियम (कलकत्ता)पर कब्जा कर लिया
- सिराजुद्दौला के काल में 20 जून 1756 को ब्लैक होल की घटना हुई
- 9 फरवरी 1757 को सिराजुद्दौला एवं अंग्रेजो के बीच अली नगर की संधि हुई
प्लासी का युद्ध
- अली नगर की संधि के बाद 23 जून 1757 को प्लासी का युद्ध हुआ
- अग्रेजो ने सिराजुद्दौला के विरुध्द मीर जाफर (सिराजुद्दौला का सेनापति) ,जगत सेठ (प्रसिध्द साहूकार), राय दुर्लब (बिचौलिया) और अमी चंद्र (बंगाल का व्यापारी) के साथ मिलकर एक षडयंत्र रचा
- 23 जून 1757 ई. में मुर्शीदाबाद से 22 मील दक्षिण में स्थित गाँव प्लासी में दोनों पक्षों में भिडंत हुई,सिराजुद्दौला वहाँ अकेला रह गया
- सिराजुद्दौला को बंदी बना के हत्या कर दी गयी
- मीर जाफर जो सिराजुद्दौला का सेनापति था इसने 25 जून 1757 को मुर्शीदाबाद में स्वयं को बंगाल का नबाब घोषित कर दिया
- अंग्रेजो ने 27 सितम्बर 1760 को मीर जाफर को हटा कर मीर कासिम को बंगाल का नबाब बना दिया
- मीर कासिम ने अपनी राजधानी मुंगेर में स्थानानतरित कर ली
- मीर कासिम ने खिजरी नामक एक नया कर वसूल किया
- मीरकासिम अंग्रेजों की कटपुतली साबित नहीं हुआ
- 1763 में कम्पनी और नवाब के बीच युद्ध प्रारम्भ हो गया उदयनाला के युद्ध में मीर कासिम को पराजय का सामना करना पडा और वह अवध चला गया
- मीर जाफर पुन: बंगाल का नवाब बना दिया गया उसने आते ही कम्पनी की सारी सुविधाएं बहाल कर दी
बक्सर का युद्ध
- बक्सर का युद्ध 22 अक्टूबर 1764 को मीर कासिम, नवाब शुजाउद्दौला, मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय तथा अंग्रेजों के मध्य हुआ
- बक्सर के युद्ध के समय दिल्ली का शासक शाहआलम द्वितीय एवं बंगाल का नवाब मीर जाफर था
- इलाहबाद की प्रथम संधि(12 अगस्त 1765) मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय के साथ की गयी
- इलाहबाद की द्वितीय संधि (16 अगस्त-1765) नवाब शुजाउद्दौला के साथ की गयी
अन्य महत्वपूर्ण युद्ध
आंग्ल मैसूर युद्ध
प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध
- 1767 से 1769 तक चला
- अंग्रेजो को हैदर अली के साथ 4 अप्रैल 1769 ई. को संधि करनी पडी
द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध
- 1780 से 1784 तक हुआ(अनिर्णीत)
- आयरकूट ने हैदर अली को पोर्टोनोवा के युध्द में पराजित कर दिया और कई स्थानों पर मैसूर की सेना ने भी अंग्रेजों को पीछे हटने पर विवश कर दिया
- मैंगलोर की संधि (मार्च 1784) हुई
तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध
- 1790 से 1792 तक चला
- टीपू ने अंग्रेजों के साथ मार्च 1792 में श्रीरंगपट्टनम की संधि की यह संधि टीपू के लिए बहुत अपमानजनक संधि थी
- इसके तहत टीपू को अपना आधा राज्य अंग्रेजों और उसके मित्रों को देना पडा
- उपरोक्त संधि के तहत टीपू को जमानत के तौर पर अपने दो पुत्रों को भी कॉर्नवालिस को दे दिया
- टीपू ने वर्ष 1797 में जैकोबियन क्लब की स्थापना के लिये सहयोग दिया
- टीपू जैकोबियन क्लब का सदस्य बन गया
- टीपू ने श्रीरंगपटनम में स्वतंत्रता का वृक्ष लगाया।
चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध
- मार्च 1799 को शुरू हुआ
- 4 मई, 1799 को श्रीरंगपट्टनम किले पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया टीपू युद्ध करते हुये मारा गया
आंग्ल मराठा संघर्ष
प्रथम आंग्ल मराठा संघर्ष
( 1775 से 1782 )
- पेशवा पद पाने के लिए रघुनाथ राव ने अंग्रेजो से सूरत की संधि (1775 ई.) की ताकि वह अंग्रेजों की सहायता से पेशवा पद हासिल कर सके
- अंग्रेजों ने 1779 में आत्मसमर्पण करके बड़गांव की संधि की जिसके द्वारा अंग्रेजों द्वारा 1775 से हासिल किए गए सभी क्षेत्रों को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा
- मई 1782 में सालबाई की संधि हुई, संधि द्वारा सिंधिया को उसके सभी क्षेत्र लौटा दिए गए और दोनों पक्षों द्वारा 20 वर्षों तक शांति सुनिश्चित करने की बात स्वीकार की गई
द्वितीय आंग्ल मराठा संघर्ष
(1803-1805)
- लार्ड वेलेजली के मराठों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप की नीति और सहायक संधि थोपने के चलते द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध प्रारंभ हुआ
- 1802 ई0 में पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अंग्रेजों के साथ बेसिन की संधि की जिसके अंतर्गत पेशवा ने अंग्रेजों का संरक्षण स्वीकार कर लिया वह पूर्णरुपेण अंग्रेजों पर निर्भर हो गया
- इसके बाद अनेक युद्ध हुए बाद में 1806 में होलकर व अंग्रेजों के मध्य राजघाट की संधि हुई
तृतीय आंग्ल मराठा संघर्ष
(1817-1819)
- लार्ड हेंगस्टिंग के पिण्डारियों के विरुद्ध अभियान से मराठों के प्रभुत्व को चुनौती मिली तथा दोनों पक्षों के मध्य युद्ध आरम्भ हो गया
- 1818 ई0 को बाजीराव द्वितीय ने सर जॉन मेलकन के सामने आत्मसमर्पण कर दिया
- इसके बाद पेशवा का पद समाप्त कर दिया गया और पेशवा विठूर भेज दिया गया
आंग्ल-सिख युद्ध
- 1843 ई. में सिंध पर अधिकार कर लेने के बाद तथा रणजीत सिंह का भय ख़त्म हो जाने के बाद अंग्रेजो ने पंजाब पर अधिकार करने कोशिश शुरू कर दी
प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध
(1845-46 ई.)
- 13 दिसंबर, 1845 को सिखों एवं अंग्रेजों में प्रथम संघर्ष मुदकी (पंजाब में फिरोजपुर के पास) में हुआ।
- निर्णायक भिड़त 10 फरवरी, 1846 ई. को सुब्बारहान में हुई, इसमें भी विश्वासघात के कारण सिख सेना हार गयी ।
- अंग्रेजों ने लाहौर पर अधिकार कर लिया तथा सिखों को लाहौर की संधि (9 मार्च, 1846 ई.) करने के लिए बाध्य कर दिया |
- भैरोवाल की संधि दिसम्बर 1846 में की गयी इसके द्वारा पंजाब के लिए प्रतिशासन परिषद् गठित की गयी इसमें हेनरी लोरेंस अध्यक्ष बने एवं 8 सिख सरदार शामिल किये गए
द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध
(1848-49 ई.)
- पंजाब काउंसिल के अध्यक्ष हेनरी लॉरेंस ने बड़ी संख्या में सिख सेना को भंग किया, परिणामस्वरूप पंजाब में अराजकता छा गई
- 13 जनवरी 1849 ई० को शेर सिंह के नेतृत्व में सिखों एवं कमांडर गफ के नेतृत्व में अंग्रेजों के बीच चिलियानवाला का युद्ध हुआ। इस युद्ध का कोई परिणाम नहीं निकला
तृतीय आंग्ल-सिख युद्ध
(1849 ई.)
- 21 फरवरी, 1849 ई० को अंग्रेजो ने गुजरात युद्ध में सिखों को परास्त कर दिया। तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने 29 मार्च 1849 ई० को पंजाब का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर दिया। हेनरी लॉरेंस ने पंजाब विलय के खिलाफ त्यागपत्र दे दिया।
अंग्रेजो एवं पिंडारियों के मध्य संघर्ष
- पिंडारियों ने अंग्रेजों के अधीन मिरजापुर तथा शाहाबाद जिलों पर 1812 ई० में आक्रमण किया।
- उन्होंने, 1815 ई० में निजाम के प्रदेश एवं 1816 ई० में उत्तरी सरकारों को लूटा।
- 1817 ई० में लॉर्ड हेस्टिंग्स (तत्कालीन गवर्नर जनरल) ने दमनात्मक कार्रवायी शुरू करवाई।
- 1824 ई० में पिंडारियों का पूर्णरूपेण सफाया हो गया
आंग्ल-नेपाल युद्ध
लॉर्ड हेस्टिंग्स के कार्यकाल में 1814 ई० में अंग्रेजों एवं गोरखों में संघर्ष हुआ,बाद में गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा को हथियार डालने पड़े,मार्च 1816 ई० में सुगौली की संधि हुई,नेपाल को अपना एक-तिहाई भूभाग ब्रिटिश हुकुमत को देना पडा।
आंग्ल-बर्मा सम्बन्ध
प्रथम आंग्ल-बर्मा युद्ध
(1824-1826 ई.)
- युद्ध का वास्तविक कारण ब्रिटिश साम्राज्यवाद था,यह युद्ध लॉर्ड एमहर्स्ट के समय में हुआ एवं यान्दबू की संधि (24 फरवरी, 1826 ई).द्वारा समाप्त हुआ
द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध
(1852 ई.)में
- लॉर्ड डलहौजी के समय हुआ युद्ध का मुख्य कारण लॉर्ड डलहौजी की साम्राज्यवादी नीति एवं पूर्व में अंग्रेजों के सम्मान की सुरक्षा मुख्य भावना थी
तृतीय आंग्ल-बर्मा युद्ध
(1855 ई.)
- लॉर्ड डफरिन के समय में हुआ इस युद्ध के द्वारा संपूर्ण बर्मा पर अंग्रेजों का अधिकार स्थापित हो गया तथा ब्रिटिश साम्राज्य की सीमाएं चीन तक विस्तृत हो गई
आंग्ल-अफगान सम्बन्ध
प्रथम आंग्ल-अफगान युद्ध
(1839 ई.)
- ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड ऑकलैंड ने रूस के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए अफगानिस्तान पर आक्रमण करने की आवश्यकता अनुभव की।
- ऑकलैंड ने शाहशुजा को अफगानिस्तान का शासन दिलवाने के लिए महाराजा रणजीत सिंह एवं शाहशुजा के साथ जून 1838 ई. को एक त्रिपक्षीय संधि की
- 1839 ई. में अंग्रेजो ने सिंध मार्ग से अफगानिस्तान पर हमला किया
- अफगानिस्तान का शासक दोस्त मुहम्मद हार गया एवं शाहशुजा को सिंहासन मिल गया
द्वितीय आंग्ल-अफगान युद्ध
(1878 ई.)
- लॉर्ड लिटन के समय हुआ
- कंधार पर अंग्रेजो का अधिकार हो गया एवं याकूब खां ने अंग्रेजो से गंडमक की सन्धि(1879 ई.)कर ली
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