indian national movement in hindi pdf | indian national movement upsc pdf
लॉर्ड लिटन के शासनकाल 1876 से 1880 ई. के बीच लॉर्ड लिटन ने कुछ ऐसे अलोकप्रिय निर्णय लिए जिसके कारण जनता के अंदर असंतोष बढ़ता चला गया,भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को शुरू करने के लिए ऐसे ही कुछ जिम्मेदार तत्कालिक कारण निम्न थे:-
- अफगानिस्तान के युद्ध में लॉर्ड लिटन द्वारा भारतीय संपदा का दुरुपयोग किया गया
- लॉर्ड लिटन द्वारा ब्रिटेन के कपड़ा निर्माताओं को राहत देने के लिए आयातित ब्रिटिश कपड़े पर से अधिकांश आयत शुल्क को हटा लिया गया इस कारण देश में काफी असंतोष व्याप्त हुआ
- 1876 ई. से लेकर 1878 ई. के बीच में भयंकर अकाल पड़ा परंतु सरकार द्वारा अकाल पीड़ितों को कोई सहायता नहीं पहुंचाई गई
- 1877 ई. में बावजूद इसके कि भयंकर अकाल पड़ा हुआ है ,दिल्ली में शाही दरबार को आयोजित किया गया एवं विक्टोरिया को भारत की सम्राज्ञी पद प्रदान किया गया, इस दरबार को आयोजित करने में धन का काफी अपव्यय किया गया तथा दूसरी तरफ अकाल पीड़ितों की तरफ कोई भी ध्यान नहीं दिया गया
- 1878 ई. में वर्नाकुलर प्रेस एक्ट के द्वारा भारतीय भाषाओं में प्रकाशित समाचार पत्रों की स्वतंत्रता पर अंकुश लगा दिया गया
- 1878 ई. में ही शस्त्र कानून के द्वारा भारतीयों को बिना सरकार से लाइसेंस प्राप्त किए किसी भी प्रकार के हथियार रखने ,खरीदने तथा बेचने पर रोक लगा दी गई
- लंदन में होने वाली सिविल सेवा परीक्षा में बैठने वाली बैठने के लिए आयु 21 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष कर दी गई, इस तरह भारतीय छात्रों का इस परीक्षा में बैठ पाना असंभव हो गया
- इल्बर्ट विवाद : लॉर्ड रिपन ने इल्बर्ट बिल बनाने की कोशिश की जिससे भारतीय जिला मजिस्ट्रेट और सेशन जज फौजदारी मुकदमों में यूरोपीय लोगों की सुनवाई कर सकें
- यूरोप के लोगों ने इस बिल का जबरदस्त विरोध किया अंततः सरकार को मजबूरन बिल को वापस लेना पड़ा
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
- भारत का राष्ट्रीय आंदोलन कांग्रेस के नेतृत्व में लड़ा गया
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 में ए ओ ह्यूम द्वारा की गई, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के पीछे ए ओ ह्यूम का मुख्य मकसद ऐसी सेफ्टी वाल्व की व्यवस्था था जिसके द्वारा शिक्षित भारतीयों का बढ़ता हुआ असंतोष बाहर निकल सके, 18 दिसंबर 18 सो 85 ईस्वी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन ग्वालियर टैंक स्थित ग्वालियर टैंक स्थित गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में व्योमेश चंद्र बनर्जी की अध्यक्षता में हुआ, इस अधिवेशन में 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रारंभिक उद्देश्य
- भारत के सभी नागरिकों का सहयोग प्राप्त करना
- जातीयता,प्रांतीयता और धार्मिक मतभेदों को समाप्त करके राष्ट्रीय एकता का निर्माण करना
- सामाजिक समस्या पर विचार करके उन पर निर्णय लेना
- आगामी वर्ष का कार्यक्रम निश्चित करना
- सरकार से भारतीयों को शासन में सम्मिलित करने की मांग करना
कांग्रेस से पूर्व के प्रमुख राजनीतिक संगठन |
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क्रम संख्या | संस्था | संस्थापक | स्थापना वर्ष |
1. | बंगभाषा प्रकाशक सभा | राजा राम मोहन राय के सहयोगी | 1836 |
2. | ब्रिटिश इंडिया सोसायटी |
एडम्स | 1839 |
3. | जमींदारी एसोसिएशन/लैंड होल्डर्स सोसाइटी | द्वारकानाथ टैगोर | 1838 |
4. | बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसायटी | 1843 | |
5. | मद्रास महाजन सभा | एम.वी.राघवाचारी एवं अन्य | 1844 |
6. | ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन | देवेन्द्रनाथ टैगोर | 1851 |
7. | मद्रास नेटिव एसोसिएशन(ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन की कलकत्ता शाखा ) | 1852 | |
8. | बम्बई एसोसिएशन | जगन्नाथशंकर सेठ | 1852 |
9. | ईस्ट इंडिया एसोसिएशन | दादा भाई नौरोजी | 1866 |
10. | पूना सार्वजनिक सभा | जस्टिस रानाडे | 1870 |
11. | इंडियन एसोसिएशन | एस.एन.बनर्जी एवं आनंद मोहन बोस | 1876 |
12. | इंडिया लीग | बाबू सिसिर कुमार घोष | 1875 |
13. | कलकत्ता भारतीय एसोसिएशन | 1876 | |
14. | मद्रास महाजन सभा | जी.एस.अय्यर एवं अन्य | 1884 |
15. | बाम्बे प्रेसीडेंसी एसोसिएशन | मेहता/तेलंग/तैयब जी | 1885 |
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का प्रथम चरण | कांग्रेस का प्रथम चरण (1885-1905)
- इस चरण को उदारवादी चरण के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस चरण में आंदोलन का नेतृत्व जो कि राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा प्रदान किया जा रहा था मुख्यतः उदारवादी नेताओं के हाथ में था, कुछ उदारवादी नेता क्रमश: दादा भाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, डब्ल्यू सी बनर्जी, एस. एन. बनर्जी ,बदरुद्दीन तैयब जी, गोपाल कृष्ण गोखले, पंडित मदन मोहन मालवीय प्रमुख रूप से थे
- इन नेताओं का शुमार भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के प्रथम चरण के नेताओं के रूप में भी किया जाता है, यह नेता उदारवादी नीतियों के समर्थक थे तथा अहिंसक विरोध प्रदर्शनों में विश्वास रखते थे, इनकी यही विशेषताएं इन्हें बीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक में उभरने वाले नव-राष्ट्रवादी जिन्हें उग्रवादी भी कहा जाता था से पृथक करती थी
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के प्रथम चरण में राष्ट्रवादियों द्वारा किये गए प्रयास:-
- राष्ट्रवादियों ने औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था के मूलभूत लक्षणों को विकसित करने के ब्रितानी प्रयासों का जोरदार विरोध किया
- राष्ट्रवादियों ने आर्थिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में यह पैरवी की कि भारत पर ब्रिटेन की आर्थिक अधिनियम अधिनियम का कम हो जाए एवं धीरे धीरे उसको समाप्त कर दिया जाए
- दादाभाई नौरोजी ने पॉवर्टी एंड अन ब्रिटिश रूल इन इंडिया नामक पुस्तक के जरिए अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के आर्थिक शोषण का वर्णन किया है
- राष्ट्रवादियों ने परंपरागत हस्तशिल्प उद्योग के विनाश एवं आधुनिक उद्योगों के विकास को बाधित करने वाली सरकार की आर्थिक नीतियों की निंदा की राष्ट्रवादियों ने स्वदेशी के विचार को प्रोत्साहित किया,1877 ई. के शाही दरबार में गणेश वासुदेव जोशी हाथ की बनी विशुद्ध खाद्य की पोशाक में उपस्थित हुए
- 1896 ई. में महाराष्ट्र में स्वदेशी आंदोलन आयोजित किया गया जिसमें छात्रों ने विदेशी कपड़ों की होली जलाई
- प्रारंभिक दौर में नेताओं ने भू-राजस्व में भारी वृद्धि को कम करने के लिए निरंतर आंदोलन चलाया
- राष्ट्रवादियों ने नमक कर एवं कुछ अन्य करो को समाप्त करने की मांग की जिसके कारण गरीब लोग बुरी तरीके से प्रभावित हो रहे थे
- आर्थिक प्रश्नों पर हुए आंदोलनों के फल स्वरुप संपूर्ण देश में यह मत विकसित हुआ की ब्रितानी शासन भारत के शोषण पर चल रहा है तथा निरंतर देश को निर्धन बना रहा है
- राष्ट्रवादियों ने जिस सबसे महत्वपूर्ण प्रशासनिक सुधार के लिए आंदोलन किया वह प्रशासनिक सेवा की उत्तम श्रेणी के पदों में भारतीयों की नियुक्तियों से संबंधित था
- राष्ट्रवादियों ने न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करने की मांग उठाई
- राष्ट्रवादियों ने हर व्यक्ति के अस्त्र को रखने के अधिकार की पैरवी की
- राष्ट्रवादियों ने सरकार की आक्रामक विदेश नीति का विरोध किया राष्ट्रवादियों द्वारा वर्मा को भारत में मिलाने,आदिवासियों का दमन करने एवं अफगानिस्तान पर आक्रमण करने का विरोध किया गया
- राष्ट्रवादियों ने स्वास्थ्य सुविधाओं को विकसित करने की मांग की आंदोलनकारियों ने ब्रितानी उपनिवेशओं में विस्थापित भारतीय मजदूरों की स्थिति को भी एक मुद्दा बनाया
- प्रेस विधायक 1878 ई. के विरोध में तब तक आंदोलन किया गया जब तक कि 1888 में यह विधायक निरस्त नहीं कर दिया गया
- 1880 से 1890 ई. के बीच गोपनीयता को बचाए रखने के नाम पर समाचार पत्रों के आलोचना करने के अधिकार को समाप्त करने की कोशिश का राष्ट्रवादियों ने मुखर विरोध किया
- राष्ट्रवादियों द्वारा नागरिक अधिकारों को सुरक्षा देने की मांग की गई
- संवैधानिक सुधार एवं स्वशासी सरकार की मांग
- प्रारंभिक राष्ट्रवादियों ने विधान-परिषदों का विस्तार कर भारतीय जनता की सरकार में अधिक हिस्सेदारी की मांग की
- सरकारी दृष्टिकोण के प्रति नरम रुख अख्तियार करने के कारण आरंभिक राष्ट्रवादियों को अंग्रेजों का पिट्ठू कहा गया
- दबाव में सरकार ने नया भारतीय विधान परिषद विधायक 1892 ई.पारित किया,सदस्यों को बजट पर बोलने का अधिकार दिया गया किंतु मताधिकार से वंचित रखा गया
- राष्ट्रवादियों की बड़ी मांगे थी कि जन-कोष पर गैर सरकारी भारतीय नियंत्रण होना चाहिए
- दादाभाई नौरोजी पहले भारतीय थे जिन्होंने 1906 में कोलकाता कांग्रेसी अधिवेशन में स्वराज शब्द का प्रयोग किया
सरकार का दृष्टिकोण
- सरकार आरंभ से ही राष्ट्रवादियों की विरोधी रही ,डफरिन ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना को संदेह की दृष्टि से देखा
- वायसराय कर्जन ने 1980 में कहा कि कांग्रेस अपनी मौत की घड़ियां गिन रही है भारत में रहते हुए मेरी सबसे बड़ी इच्छा यह है कि मैं उसे शांतिपूर्वक मरने में मदद कर सकूं
- राष्ट्रीय आंदोलन का मुकाबला करने के लिए ब्रितानी हुकूमत ने फूट डालो और राज करो की नीति पर कार्य किया, ब्रिटिश अधिकारियों ने सैयद अहमद खान, राजा शिवप्रसाद तथा अन्य ब्रितानी समर्थक व्यक्तियों को कांग्रेस विरोधी आंदोलन शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया
- सर सैयद अहमद के विरोध के कारण सेंट्रल नेशनल मोहम्डंस एसोसिएशन एवं लिटरेरी सोसाइटी के नेता कोलकाता अधिवेशन 1886 से अलग रहे
- सर सैयद अहमद खान ने कांग्रेस का विरोध करने के लिए अंग्रेज परस्त हिंदू एवं मुसलमानों को मिलाकर 1888 में यूनाइटेड पैट्रियोटिक एसोसिएशन की स्थापना की
- ब्रिटिश सरकार द्वारा दिखावे के लिए कुछ रियायत दी गई साथ ही साथ दमनात्मक नीतियों का अनुसरण भी किया गया
- उदारवादियों का विश्वास था कि भारत की स्थिति को ब्रिटिश शासन के अधीन रहकर ही सुधारा जा सकता है परंतु 1887 के पश्चात कांग्रेस और सरकार के बीच कड़वाहट बढ़ने लगी उदारवादियों का भ्रम तब टूट गया जब ब्रितानी शासन का वास्तविक स्वरूप उनके सामने आने लगा ,इस काल में कांग्रेस ने सरकार की आलोचना तीव्र रूप से करनी आरंभ कर दी
- सरकार एवं कांग्रेस के बीच संबंध और खराब होते चले गए ,लॉर्ड डफरिन ने कांग्रेस को राष्ट्रद्रोहियों की संस्था कहा
- कालांतर में सरकार ने कांग्रेस के प्रति फूट डालो राज करो की नीति को अपना लिया, सरकार ने संप्रदाय एवं विचारों के आधार पर राष्ट्रवादियों में फूट डालने का प्रयास किया तथा उग्रवादियों को उदारवादियों के विरुद्ध भड़काना आरंभ कर दिया परंतु अपने इस कुत्सित प्रयासों के पश्चात भी ब्रितानी सरकार राष्ट्रवाद के उफान को रोक पाने में सफल नहीं हो पाई
उग्र राष्ट्रवाद का युग (1905-1909)
- कांग्रेस की उदारवादी नीति से ब्रितानी सरकार पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ रहा था इसी प्रतिक्रिया-स्वरूप संघर्ष की भावना का जन्म हुआ, संवैधानिक आंदोलन से भारतीयों का विश्वास उठ गया अतः संघर्ष द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त करने की जिस भावना का जन्म हुआ उसे ही उग्र राष्ट्रवाद की भावना कहा जाता है
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक दल इसी भावना का कट्टर समर्थक था
उग्र राष्ट्रवाद के उदय होने के कारण निम्न थे
- अंग्रेजी राज्य के सही स्वरूप की पहचान
- आत्मविश्वास तथा आत्म सम्मान में वृद्धि
- शिक्षा का विकास
- अंतरराष्ट्रीय घटनाओं का प्रभाव
- बढ़ते हुए पश्चिमीकरण के विरुद्ध प्रतिक्रिया
- उदार वादियों की उपलब्धियों से असंतोष
- लॉर्ड कर्जन की नीतियां इत्यादि
- इस विचार धारा के कुछ नेता – लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, बिपिनचंद्र पाल और अरबिंदो घोष।
बंगाल विभाजन एवं स्वदेशी आंदोलन (1905 ई. से 1906 ई.)
- लॉर्ड कर्जन ने देश भक्ति के सैलाब को रोकने के लिए राष्ट्रीय गतिविधियों के केंद्र बंगाल को जुलाई 1905 में 2 प्रांतों पश्चिमी बंगाल( बिहार उड़ीसा सहित )और पूर्वी बंगाल (असम सहित) में विभाजित करने की घोषणा की
- बंगाल का पूर्वी भाग मुस्लिम बाहुल्य एवं पश्चिमी भाग हिंदू बाहुल्य था
- परोक्ष रूप से लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल विभाजन का कारण प्रशासनिक असुविधा का होना बताया गया
- बंगाल विभाजन की प्रतिक्रिया स्वरूप 7 अगस्त 1905 को कोलकाता के टाउन हॉल में विशाल सभा द्वारा ब्रितानी माल के बहिष्कार का प्रस्ताव पास किया गया
- 16 अक्टूबर 1950 को यानी कि जिस दिन विभाजन प्रभावी हुआ राष्ट्रीय शोक की घोषणा की गई
- बंगाल के लिए स्वदेशी और बहिष्कार का अनुमोदन बनारस कांग्रेस द्वारा किया गया ,इस दौरान जगह-जगह दियासलाई, साबुन, मिट्टी के बर्तन बनाने के कारखाने इत्यादि खुल गए।
- गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने स्वदेशी भंडार खोलने में मदद की
- इस आंदोलन के प्रारंभ में मुसलमानों ने भी बड़ी संख्या में भाग लिया
- विरोध के कारण सरकार द्वारा बंगाल विभाजन 1911 में वापस लेना पड़ा
मुस्लिम लीग की स्थापना 1906
- मुस्लिम लीग की स्थापना 30 दिसंबर 1906 में ब्रिटिश समर्थक ढाका के नवाब आगा खां ने ढाका में की
- मुस्लिम लीग का प्राथमिक उद्देश्य भारतीय मुसलमानों में ब्रितानी सरकार के प्रति निष्ठा को पैदा करना था तथा द्वितीय उद्देश्य भारतीय मुसलमानों के राजनीतिक हितों को सुरक्षित करना था
- मुस्लिम लीग ने 1913 ई. में स्वायत्त शासन प्राप्त करने की घोषणा की
- 1916 में कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग में लखनऊ पैक्ट हुआ
- 1915,1916,1917 के मुस्लिम लीग के अधिवेशन में महात्मा गांधी, मदन मोहन मालवीय एवं श्रीमती सरोजिनी नायडू ने भाग लिया
- 1913 में कांग्रेस ने भूपेंद्र नाथ बसु, लाला लाजपत राय एवं मोहम्मद अली जिन्ना को डेपुटेशन में इंग्लैंड भेजने के लिए चयनित किया
- 30 सितंबर 1921 को मोहम्मद अली जिन्ना कांग्रेस से अलग हो गए
- मार्च 1927 में दिल्ली में आयोजित मुस्लिम लीग के अधिवेशन में दो गुट बन गए इसमें से एक गुट के नेता मोहम्मद शफी तथा दूसरे गुट के नेता जिन्ना थे
- मोहम्मद अली जिन्ना ने संयुक्त निर्वाचन एवं साइमन कमीशन के बहिष्कार संबंधी प्रस्ताव को रखा वहीं दूसरी तरफ मोहम्मद शफी ने साइमन कमीशन से पूर्ण सहयोग करने की वकालत की
- देश की मुस्लिम राजनीति में 4 गुट क्रमश: मुस्लिम लीग,राष्ट्रवादी मुसलमान ,पंजाब का अहरार दल एवं बंगाल में कृषक प्रजा पार्टी थे
- 1928 से 1936 तक कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग के सहयोग का काल था
- 1930 के मुस्लिम लीग के इलाहाबाद अधिवेशन में मोहम्मद इकबाल ने अस्पष्ट शब्दों में एक पृथक मुस्लिम राज्य के निर्माण का सुझाव दिया,इकबाल को ही पाकिस्तान का जन्मदाता कहा जाता है
- 1932 ई. में सांप्रदायिक निर्णय को दोनों दलों ने स्वीकार किया
- 1935 ई. के अधिनियम में प्रस्तावित संघीय व्यवस्था की दोनों कांग्रेस एवं लीग ने समान रूप से आलोचना की
- मुस्लिम लीग ने 22 दिसंबर 1939 ई. को मुक्ति दिवस मनाया
- 1940 में मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन की अध्यक्षता मोहम्मद अली जिन्ना ने की पाकिस्तान शब्द पंजाब, अफगानिस्तान के सीमा प्रांत ,कश्मीर ,सिंध के प्रारंभिक शब्दों एवं बलूचिस्तान के शब्दों को मिलाकर बनाया गया था
- 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में राष्ट्रवादी मुसलमानों को छोड़कर मुसलमानों ने अपने को पृथक रखा
- 1943 के कराची अधिवेशन में मुस्लिम लीग ने भारत छोड़ो प्रस्ताव के विपरीत विभाजन करो एवं जाओ का प्रस्ताव किया
- प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस 16 अगस्त 1946 के दिन को मुकर्रर किया गया
- बंगाल में मुस्लिम लीग की सरकार थी जिसके मुख्यमंत्री हसन हसीद सोहरावर्दी थे
- 2 सितंबर 1946 को नेहरू की अध्यक्षता में अंतरिम सरकार ने पद ग्रहण किया ,प्रारंभ में सरकार में मुस्लिम लीग शामिल नहीं थी परंतु बाद में मुस्लिम लीग सरकार में शामिल हुई
- मुस्लिम लीग ने 9 दिसंबर 1946 में हुई संविधान सभा की प्रथम बैठक का बहिष्कार किया
सूरत विभाजन (1907)
- कांग्रेस में उग्र विचारधारा के प्रमुख नेता बाल गंगाधर तिलक ,लाला लाजपत राय एवं विपिन चंद्र पाल को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाता है
- 1905 में कांग्रेस के बनारस अधिवेशन में सर्वप्रथम उग्रवादियों ने अपने साथियों के साथ अलग बैठक की
- कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन 1906 में स्वराज्य, स्वदेशी, बहिष्कार एवं राष्ट्रीय शिक्षा से संबंधित चार प्रस्ताव पास किए
- संवैधानिक मत वाले लोग प्रस्ताव को पारित करना ही पर्याप्त समझते थे इस दिशा में अन्य कोई कार्य करने से परहेज करते थे
- सूरत में कांग्रेस में फूट का प्रमुख कार्य कारण उदारवादी दल के नेता 1906 में पास किए गए प्रस्तावों को लागू नहीं करना चाहते थे
- उदारवादी 1907 के लिए लाला लाजपत राय के स्थान पर रासबिहारी घोष को अध्यक्ष बनाना चाहते थे अतः सूरत में कांग्रेस विभाजन की अभूतपूर्व घटना घट गई
उग्रवादियों की कार्यशैली
- उग्रवादी संवैधानिक दल की भांति अपने कार्य की अवधि केवल 3 या 4 दिन तक ही सीमित नहीं रखना चाहते थे बल्कि वह वर्ष भर आंदोलन करते रहना चाहते थे
- उग्रवादी स्वदेशी का प्रोत्साहन एवं विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना चाहते थे
- उग्रवादी सरकारी शिक्षा पद्धति के स्थान पर एक अलग राष्ट्रीय शिक्षा पद्धति की स्थापना करना चाहते थे
क्रांतिकारी उग्रवाद का उद्भव और विकास
- भारत में उग्रवाद की पहली घटनाओं में वहाबियों द्वारा सितंबर 1871 ई. में कोलकाता में चीफ जस्टिस नार्मन की हत्या तथा फरवरी 1872 ई. में अंडमान में वायसराय मेयो की हत्या थी
- रूस एवं आयरलैंड के उग्रवादी आंदोलन ने भारत के उग्रवादी आंदोलन को पैदा करने और संगठित करने में सहयोग प्रदान किया
- संगठित उग्रवाद का रास्ता सर्वप्रथम महाराष्ट्र में अपनाया गया
महाराष्ट्र
- चापेकर बंधुओं ने 1896-1897 में पूना में व्यायाम मंडल की स्थापना की
- इसकी स्थापना के पीछे चापेकर बंधुओं का उद्देश्य शस्त्र संचालन की शिक्षा देकर ऐसे नौजवानों को तैयार करना था जो देश के लिए अपने प्राणों की बाजी भी लगा दे
- चापेकर बंधुओं ने पूना में 22 जून 1897 को दो अंग्रेज अधिकारी को गोली मार दी
- दामोदर हरी चापेकर को 18 अप्रैल 1898 ई. को फांसी दे दी गई
- 1909 में नासिक में गणपति उत्सव मनाने के सिलसिले में मित्र मेला की स्थापना हुई
- 1907 में गणेश सावरकर ने अभिनव भारत नामक गुप्त संस्था बनाई
- 1917 में आतंकवाद की घटनाओं की जांच के लिए रौलट कमीशन (सेडीशन कमेटी)बिठाई गई जिसने पुणे की इस घटना को भारतीय उग्रवाद का पहला विस्फोट कहा
बंगाल
- बंगाल में क्रांतिकारियों का पहला प्रमुख संगठन अनुशीलन समिति था इसकी स्थापना 24 मार्च 1903 को की गई
- अनुशीलन पार्टी ने क्रांति का प्रचार करने के लिए 1906 में युगांतर नामक पत्र निकाला
- युगांतर के प्रथम संपादक भूपेंद्रनाथ दत्त को 24 जुलाई 1907 को 1 साल की सजा हुई
- 30 अप्रैल 1908 को मुजफ्फरपुर में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने जिला जज के ऊपर बम फेका परंतु उनके स्थान पर मिस्टर केनेडी की पत्नी और पुत्री मारी गई
- खुदीराम बोस को 11 मई 1908 को फांसी दे दी गई
- प्रफुल्ल चाकी ने गिरफ्तार होने के भय से खुद को गोली मार ली
- मुजफ्फरपुर बम कांड में नरेंद्रनाथ गोसाई मुखबिर बना था जिस के बयान देने से पूर्व ही कन्हाई लाल दत्त और सत्येंद्र नाथ बोस ने जेल के अंदर ही उसको गोली मार दी
- अरविंद घोष ने कर्मयोगिन नामक अंग्रेजी पत्र निकाला
पंजाब और दिल्ली
- मुहिब्बाने वतन क्रांतिकारी संस्था पंजाब में सक्रिय थी इसके सदस्यों में लालचंद फलक अंबा प्रसाद और अजीत सिंह थे
- 23 दिसंबर 1912 को दिल्ली के वायसराय हार्डिंग पर बम फेंका गया
- इस सिलसिले में अनेक गिरफ्तारियां हुई तथा मुकदमा चला जिसको दिल्ली षड्यंत्र केस के नाम से जाना जाता है
संयुक्त प्रदेश आगरा-अवध
- संयुक्त प्रदेश आगरा-अवध में क्रांतिकारियों के कार्यों का केंद्र बनारस था
- सुंदरलाल ने 1909 में इलाहाबाद से कर्मयोगी पत्र निकाला
- रासबिहारी बोस के 1913 में बनारस आने पर क्रांतिकारी आंदोलन की गति और तेज हो गई
विदेश में क्रांतिकारी संगठन एवं कार्य
- विदेश में हुए क्रांतिकारी कार्यों में सर्वप्रथम श्यामजी कृष्ण वर्मा का नाम आता है
- 1905 में श्यामजी कृष्ण वर्मा ने लंदन में इंडिया होम रूल सोसाइटी की स्थापना की तथा इंडियन सोशियोलॉजिस्ट नामक पत्र आरंभ किया
- इस सोसाइटी का प्रमुख उद्देश्य भारत के लिए होमरूल प्राप्त करना तथा ब्रिटेन में व्यवहारिक उपायों से भारत के पक्ष में जनमत तैयार करना था
- लंदन में श्यामजी कृष्ण वर्मा ने भारतीयों के लिए इंडिया हाउस नामक होटल की स्थापना की
- मदन लाल धींगरा ने लंदन में 1 जुलाई 1909 को भारत सचिव विलियम कर्जन को गोली मारी
- पेरिस में श्यामजी कृष्ण वर्मा के सहयोगियों में श्रीमती भीखाजी रुस्तम कामा का नाम प्रमुख था
- श्रीमती कामा को उनके द्वारा किए गए कार्यों के लिए भारतीय क्रांति की मां भी कहा जाता है
- 1913 में लाला हरदयाल ने संयुक्त-राज्य-अमेरिका में गदर पार्टी की स्थापना की
- 1913 में लाला हरदयाल एवं उनके साथियों ने सनफ्रांसिस्को में गदर नामक पत्र निकाला
कामागाटामारूकामागाटामारू एक जलयान था जिसे प्रवासियों को कनाडा पहुंचाने के लिए भाड़े पर लिया गया था, कामागाटामारू के नेता गुरुदत्त सिंह थे 23 मई 1914 को कामागाटामारू वैंकूवर पहुंचा परंतु कनाडा के अधिकारियों ने अप्रवासी कानून की सभी शर्तें पूरी न करने के कारण उतरने की इजाजत नहीं दी 22 जुलाई 1914 को कामागाटामारू पुन: वैंकूवर से रवाना हुआ तथा सितंबर के अंत में कोलकाता पहुंचा |
मार्ले मिंटो सुधार (1909)
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दिल्ली दरबार (1911)
- लॉर्ड हार्डिंग अंतरराष्ट्रीय पृष्ठभूमि में भारतीयों का सहयोग लेना अनिवार्य समझता था
- लॉर्ड हार्डिंग ने 1911 में सम्राट जॉर्ज पंचम एवं महारानी मेरी को भारत बुलाया,इसी दरबार में बंगाल विभाजन को रद्द करने तथा राजधानी कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित करने की घोषणा की गई
गांधी जी का अभ्युदय
- मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 में गुजरात के काठियावाड़ में पोरबंदर नामक स्थान में हुआ था
- गांधी जी के पिता काठियावाड़ के दीवान थे
- गांधीजी इंग्लैंड से बैरिस्टर बनने के पश्चात गुजरात से संबंधित एक व्यापारी(दादा अब्दुल्ला) के मुकदमे के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका गए वहां उन्होंने एशियाई मजदूरों की दयनीय हालत को देखा
- गांधी जी ने रंगभेद की नीति के विरुद्ध विरोध किया इसके बाद गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में रुक कर भारतीय मजदूरों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया तथा 1914 तक उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में प्रवास किया इसके बाद गांधी जी भारत वापस आ गए
संघर्ष का पहला चरण (1894 से 1906)
- इस चरण में गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीकी सरकार को प्रार्थना पत्र एवं याचिकाएं सौंपने की नीति अपनाई
- इसी अवधि में गांधी जी ने नेटल भारतीय कांग्रेस की स्थापना की तथा इंडियन ओपिनियन नामक पत्र शुरू किया
सत्याग्रह का काल (1986-1914)
इस अवधि में गांधी जी ने सविनय अवज्ञा या अहिंसात्मक प्रतिरोध का रास्ता बनाया जिसको गांधी जी ने सत्याग्रह का नाम दिया
टॉलस्टॉय फॉर्म
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गांधी जी की भारत वापसी
गांधी जी जनवरी 1915 में भारत वापस लौट आए अब तक गांधी जी भारत में काफी लोकप्रिय हो चुके थे ,वापस लौट कर गांधी जी ने यह निर्णय किया कि वह अगले 1 वर्ष तक भारत भ्रमण करेंगे तथा जनसाधारण की स्थिति का अपने आप अवलोकन करेंगे
चंपारण सत्याग्रह (1917 )प्रथम सविनय अवज्ञा
- चंपारण सत्याग्रह नील की अनुबंधित खेती से संबंधित था जिसके अंतर्गत किसानों को अपनी भूमि के 3/20 वे हिस्से में नील की खेती करना अनिवार्य था यही व्यवस्था तिनकठिया पद्धति के नाम से जानी जाती थी इस क्षेत्र में किसानों की दशा काफी दयनीय हो चुकी थी इसी के लिए चंपारण से जुड़े एक आंदोलनकारी राजकुमार शुक्ल ने गांधी जी को चंपारण आने के लिए निमंत्रित किया ,निमंत्रण मिलने पर गांधी जी राजेंद्र प्रसाद, महादेव देसाई, जे बी कृपलानी ,बृजकिशोर,मजहर उल-हक, नरहरि पारीख के साथ मामले की जांच करने चंपारण पहुंचे यहां अधिकारियों ने गांधी जी से वापस जाने को कहा लेकिन गांधीजी ने इस आदेश को मानने से इंकार कर किसी भी प्रकार के दंड को भुगतने का फैसला किया
- गांधी जी द्वारा अहिंसात्मक प्रतिरोध या सत्याग्रह का मार्ग चुना गया ,गांधी जी के इस फैसले से सरकार बेबस हो गई और गांधीजी को चंपारण जाने की आज्ञा दे दी गई
- गांधीजी सरकार को यह समझाने में सफल रहे कि तिनकठिया पद्धति समाप्त कर देनी चाहिए ,एक दशक के भीतर ही गोरे बागान मालिकों ने चंपारण को छोड़ दिया इस प्रकार गांधीजी ने भारत में सविनय अवज्ञा आंदोलन के रूप में प्रथम विजय प्राप्त की
अहमदाबाद मिल हड़ताल (1918) प्रथम भूख हड़ताल
गांधीजी ने मार्च 1918 में अहमदाबाद मिल हड़ताल के मुद्दे में हस्तक्षेप किया, यहां मिल मालिकों एवं मजदूरों के बीच प्लेग-बोनस को लेकर विवाद था ,गांधी जी के अनशन पर बैठने से मिल मालिक घबराकर समझौता करने को तैयार हो गए इस प्रकार गांधी जी के नेतृत्व में दूसरी सफलता हासिल की गई
खेड़ा सत्याग्रह (1918) प्रथम असहयोग
1918 के भीषण अकाल के कारण खेड़ा जिले में फसल पूर्णतया बर्बाद हो गई थी फिर भी सरकार ने मालगुजारी वसूलने की प्रक्रिया को जारी रखा, सरकार की ओर से कहा गया यदि किसान करो का भुगतान नहीं करेंगे तो किसानों की संपत्ति जप्त कर ली जाएगी ,गांधी जी ने किसानों को राजस्व अदा न करने तथा संघर्ष करने की प्रेरणा दी अंततः सरकार ने किसानों के साथ एक समझौता किया इस तरह खेड़ा आंदोलन ने किसानों के बीच एक जागरूकता का संचार किया
लखनऊ समझौता (1916)
- 1915 में कांग्रेस का अधिवेशन बम्बई में हुआ तथा मुस्लिम लीग ने भी 1915 में अपना अधिवेशन बम्बई में ही किया
- इस अधिवेशन में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि दोनों को एक दूसरे के प्रति सहयोगात्मक रुख अपनाना चाहिए
- लखनऊ समझौते में मुसलमानों के अधिकारों के संबंध में सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली तथा उनके अधिप्रतिनिधित्व की मांग मान ली गयी
- विभिन्न प्रांतीय व्यवस्थापिका सभाओं में निर्वाचित भारतीय सदस्यों की संख्या का निश्चित भाग मुसलमानों के लिए आरक्षित कर दिया गया
- पंजाब में 50%,उत्तर प्रदेश में 30%, बम्बई में 33%, बंगाल में 40%, सेंट्रल प्रोविंस में 15% बिहार में 25% ,मद्रास में 15% स्थान सुरक्षित कर दिए गए
- केंद्रीय लेजिसलेटिव काउंसलिंग में निर्वाचित सदस्यों की संख्या का एक तिहाई(1/3)भाग मुसलमानों के लिए सुरक्षित कर दिया गया
- कांग्रेस ने मुस्लिम लीग को मुसलमानों का एकमात्र प्रतिनिधि मानकर अपने आप को केवल हिंदुओं का प्रतिनिधि बना लिया
- मुसलमानों की सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली को स्वीकार कर लेने से भारतीय जन समूह के में एकता के सिद्धांत को गहरा धक्का लगा
होम रूल लीग (1916)
- सर्वप्रथम आयरलैंड में रेडमांड के नेतृत्व में होमरूल लीग की स्थापना हुई
- मार्च 1916 में तिलक ने महाराष्ट्र में होमरूल लीग की स्थापना की
- एनी बेसेंट ने 1 सितंबर 1916 को होमरूल लीग की स्थापना की
- एनी बेसेंट को 1917 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्षता के लिए चुना गया
- एनी बेसेंट ने दैनिक पत्र न्यू इंडिया एवं साप्ताहिक पत्र कॉमन-वील निकाला
मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार(1918)
- मोंटेग्यू(भारत सचिव) 20 अगस्त 1917 की घोषणा को पूरा करने के लिए स्वयं भारत आए एवं गवर्नर जनरल चेम्सफोर्ड के साथ मिलकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसे मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड रिपोर्ट कहा जाता है
मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार
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राष्ट्रीय-आंदोलन (1919-1933)
रोलेट एक्ट (1919)
- प्रथम विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजों ने भारतीय आकांक्षाओं को पूरा करने के बजाय एक काला कानून रोलेट एक्ट पारित कर दिया
- रोलेट एक्ट के अनुसार किसी व्यक्ति पर मात्र संदेह होने से ही उसको बंदी बनाया जा सकता था तथा गुप्त रूप से मुकदमा चलाकर दंडित किया जा सकता था
- गांधीजी ने रोलेट एक्ट के खिलाफ शांतिपूर्ण आंदोलन चलाने के लिए फरवरी 1919 में सत्याग्रह लीग की स्थापना की
- इस एक्ट के खिलाफ पहले 20 मार्च तथा बाद में 6 अप्रैल 1919 को देशव्यापी हड़ताल की गई
- 9 अप्रैल 1919 को पंजाब के दो लोकप्रिय नेताओं डॉक्टर सतपाल और डॉक्टर किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया
जलियांवाला बाग हत्याकांड (1919)
- 11 अप्रैल 1919 को जनरल डायर अमृतसर के आंदोलन को शांत करने के लिए पहुंचा तथा वहां मार्शल लॉ की स्थिति स्थापित कर दी
- 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में जनता ने एक सार्वजनिक सभा की, इस बात से बाहर निकलने का एक ही रास्ता था जहां जनरल डायर ने बिना चेतावनी दिए गोली चलवा कर अनेक लोगों को मार डाला यह हत्याकांड जलियांवाला बाग हत्याकांड कहलाता है
- इस हत्याकांड में 1000 लोगों की मृत्यु हुई
- इस हत्याकांड की जांच के लिए हंटर कमेटी की स्थापना की गई
खिलाफत आंदोलन (1919)
- तुर्की के सुल्तान को इस्लामी जगत का धार्मिक नेता(खलीफा) समझा जाता था ,
- 1914 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री लार्ड जॉर्ज द्वारा भारतीय मुसलमानों को धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का आश्वासन दिया गया था
- प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात तुर्की के खलीफा के पद को अंग्रेजों द्वारा समाप्त किए जाने के कारण भारतीय मुसलमान उत्तेजित हो गए
- अली बंधुओं (मौलाना मोहम्मद अली और मौलाना शौकत अली) के नेतृत्व में भारत में आंदोलन चलाया गया जो खिलाफत आंदोलन कहलाता है
- 31 अगस्त 1919 को खिलाफत दिवस मनाया गया
- गांधी जी ने खिलाफत आंदोलन को हिंदू मुस्लिम एकता के अवसर के तौर पर देखा
- नवंबर 1919 में दिल्ली में हुए ऑल इंडिया खिलाफत सम्मेलन में गांधी जी को अध्यक्ष चुना गया
- गांधी जी ने 1 अगस्त 1920 को खिलाफत के प्रश्न पर सहयोग आंदोलन आरंभ कर दिया
- गांधीजी के प्रस्ताव को 1919 के कोलकाता अधिवेशन एवं 1920 के नागपुर अधिवेशन में स्वीकृति प्राप्त हो गई
असहयोग आंदोलन (1920-1922)
- आंदोलन के दो प्रकार के कार्यक्रम रचनात्मक तथा विध्वंसात्मक थे
- रचनात्मक कार्यों में स्वदेशी को प्रोत्साहन ,असहयोग आंदोलन के लिए तिलक कोष में एक करोड़ की राशि एकत्र करना ,स्वयं सेवकों की बड़ी मात्रा में भर्ती करना ,20 लाख चरखो को बेरोजगारों में बटवाना शामिल थें
- विध्वंसात्मक कार्यों में विधानसभाओं, न्यायालय एवं अंग्रेजी वस्तुओं के प्रयोग तथा मदिरापान का त्याग करना था
- सरकारी शिक्षा पद्धति का बहिष्कार किया गया
- जामिया मिलिया इस्लामिया(अलीगढ़), बिहार विद्यापीठ, काशी विद्यापीठ और गुजरात विद्यापीठ की स्थापना हुई
- गांधीजी ने युद्ध के दौरान सेवाओं के लिए दिया गया ‘केसर-ए-हिंद’ का पद लौटा दिया
- खादी आजादी का प्रतीक बन गया
चौरी-चौरा कांड (1922)
- 5 फरवरी 1922 को चौरी-चौरा नामक स्थान जो कि गोरखपुर जिले में स्थित था पर किसानों के जुलूस पर पुलिस ने गोलियां चलाई, क्रोधित भीड़ ने पुलिस थाने को घेर कर आग लगा दी जिसमें 22 पुलिस वाले मारे गए यही चोरी चोरा हत्याकांड कहलाता है
- चौरी-चौरा हत्याकांड के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया
- अंग्रेजी सरकार ने इस अवसर का लाभ उठाकर गांधीजी को 10 मार्च 1922 में बंदी बना लिया तथा राजद्रोह फैलाने के आरोप में उन्हें 6 वर्ष की कैद की सजा सुनाई गई
- गांधी जी को 5 फरवरी 1924 को खराब स्वास्थ्य के कारण जेल से छोड़ दिया गया
स्वराज्य दल का गठन (1923)
- 1922 में असहयोग आंदोलन के स्थगित किए जाने के उपरांत मोतीलाल नेहरू तथा चितरंजन दास ने 1923 में स्वराज्य पार्टी का गठन किया
- स्वराज्य पार्टी ने केंद्रीय विधानसभा में 145 में से 48 स्थान प्राप्त किए
- स्वराज्य पार्टी ने ली कमीशन की रिपोर्ट को स्वीकृत नहीं होने दिया जो कि सरकारी सेवाओं में जातीय श्रेष्ठता को बनाए रखने के बारे में थी
हिंदू महासभा
- हिंदू महासभा का गठन 1925 में लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में किया गया
साइमन-कमीशन(1927)
- 1919 के अधिनियम में यह व्यवस्था थी कि 10 वर्ष तक कार्य करने के पश्चात एक कमीशन बैठाया जाएगा ताकि वह हुए परिवर्तनों के विषय में ठीक से जांच कर सके
- 8 नवंबर 1927 को इंग्लैंड के प्रधानमंत्री ने कमीशन की घोषणा की
- 3 फरवरी 1928 को साइमन कमीशन बम्बई पहुंचा
- इस कमीशन का स्वागत हड़ताल, काले झंडों तथा साइमन वापस जाओ के नारों के साथ हुआ
- इस कमीशन में एक भी भारतीय को सम्मिलित नहीं किया गया
- इस आंदोलन में लाला लाजपत राय नेहरू कथा गोविंद बल्लभ पंत को काफी चोट आई जिसके कारण लाला लाजपत राय का स्वर्गवास हो गया
- साइमन कमीशन की रिपोर्ट 7 जून 1930 को प्रकाशित हुई
- रिपोर्ट प्रकाशित होने से पूर्व सुझाव दिया कि रिपोर्ट पर विचार विमर्श करने के लिए एक एक गोलमेज सम्मेलन बुलाया जाए
साइमन कमीशन की रिपोर्ट
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कांग्रेस और अंतरराष्ट्रीय मामले
- फरवरी 1927 में जवाहर लाल नेहरू ने कांग्रेस की ओर से ब्रुसेल्स में आर्थिक अथवा राजनीतिक साम्राज्यवाद से पीड़ित एशियाई, अफ्रीकी ,लैटिन अमेरिकी देशों के क्रांतिकारियों तथा राजनीतिक निर्वाचित द्वारा आयोजित कांग्रेस में भाग लिया
- इस कांग्रेस में साम्राज्यवाद विरोधी लीग की स्थापना हुई तथा नेहरू को कार्यकारिणी के सदस्य के तौर पर चुना गया
नेहरू-रिपोर्ट (1928)
- साइमन कमीशन की नियुक्ति के साथ ही इंग्लैंड सरकार ने भारतीय नेताओं को यह चुनौती दी कि यदि वे विभिन्न संप्रदायों की सहमति से एक संविधान का निर्माण कर सकें कर पाए हैं तो इंग्लैंड सरकार उस पर विचार करने को तैयार है
- 28 फरवरी 1928 को मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में भारत के भावी संविधान की रूपरेखा बनाने के लिए एक सर्वदलीय समिति बनाई गई जिसमें 8 सदस्य थे
- इस रिपोर्ट को 1928 के लखनऊ सम्मेलन में स्वीकार किया गया
- इस रिपोर्ट में भारत के लिए डोमिनियन स्टेटस की प्राप्ति को तत्काल लक्ष्य तथा पूर्ण स्वराज्य को अगला लक्ष्य बनाया गया
- मोहम्मद अली जिन्ना ने जो कि मुस्लिम लीग के अध्यक्ष थे रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया
नेहरू रिपोर्ट
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- जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस के ऐतिहासिक लाहौर अधिवेशन 1929 का अध्यक्ष बनाया गया
- इस अधिवेशन में एक प्रस्ताव पारित कर पूर्ण स्वराज्य को कांग्रेस का लक्ष्य घोषित किया गया
- 31 दिसंबर 1929 को तिरंगे झंडे को फहराया गया
- प्रथम स्वतंत्रता दिवस के रूप में 26 जनवरी 1930 निश्चित किया गया
- दिसंबर 1928 में कोलकाता सम्मेलन में नेहरू रिपोर्ट पर विचार हुआ
- मोहम्मद अली जिन्ना ने मार्च 1929 में 14 सूत्रीय मांग पत्र प्रस्तुत किया
सविनय अवज्ञा आंदोलन
- कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने फरवरी 1930 में पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करने के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ करने का अधिकार महात्मा गांधी को दे दिया
- गांधी जी ने 2 मार्च 1930 को गवर्नर जनरल इरविन को एक पत्र लिखा इरविन को एक पत्र लिखा जिसमें 11 मांगे रखी गई
- मादक वस्तुओं का निषेध किया जाए
- सेना और नौकरशाही पर किए गए खर्च को कम किया जाए
- नमक कर को समाप्त किया जाए
- भू राजस्व में 50% की कमी की जाए
- रुपए और स्टर्लिंग के अनुपात में परिवर्तन किया जाए
- भारतीय जहाजों के लिए समुद्र व्यापार की सुविधा दी जाए
- विदेशी कपड़े के आयात पर नियंत्रण लगाया जाए प्रतिबंध लगाया जाए
- गुप्तचर विभाग को समाप्त कर दिया जाए अथवा उस पर नागरिकों का अधिकार हो
- सभी राजनीतिक बंदियों को जेल से रिहा कर दिया जाए
- भारतीयों को हथियार रखने की सुविधा प्राप्त हो
- पोस्टल रिजर्वेशन बिल को स्वीकार किया जाए
- 12 मार्च 1930 को गांधी जी ने 78 स्वयंसेवकों के साथ दांडी के लिए 200 मील की यात्रा साबरमती से प्रारंभ की
- गांधीजी 24 दिनों में 385 किलोमीटर की यात्रा पूरी करके 6 अप्रैल 1930 को दांडी पहुंचे और समुद्र तट से नमक को एकत्रित किया एवं नमक कानून को तोड़ा
- यह आंदोलन देश के कोने कोने में फैल गया
- सीमांत गांधी के नाम से लोकप्रिय खान अब्दुल गफ्फार खान ने खुदाई खिदमतगार संगठन की स्थापना की जो कि लाल कुर्ती के नाम से प्रसिद्ध हुआ
- नागालैंड की रानी गैडीनल्यू ने 13 वर्ष की आयु में ही गांधी जी के आह्वान पर विदेशी शासन के विरुद्ध झंडा उठा लिया
- 1932 में रानी को गिरफ्तार कर लिया गया और आजीवन कारावास की सजा दी गई
- 1947 में स्वतंत्र भारत द्वारा रानी को रिहा किया गया
प्रथम गोलमेज सम्मेलन
(12 नवंबर 1930 से 19 जनवरी 1931)
- प्रथम गोलमेज सम्मेलन का उद्घाटन जॉर्ज पंचम ने किया तथा सम्मेलन की अध्यक्षता इंग्लैंड के प्रधानमंत्री रेम्जे मैकडोनाल्ड ने की
- इसी सम्मेलन में अंबेडकर ने अनुसूचित जातियों के लिए पृथक निर्वाचन की मांग की
- बंगाल एवं पंजाब के प्रतिनिधियों ने जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व की मांग की
प्रथम गोलमेज सम्मेलन की घोषणाएं
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गांधी-इरविन समझौता (1931)
- गांधी जी को 26 जनवरी 1931 को रिहा कर दिया गया
- गांधीजी और लॉर्ड इरविन में 17 फरवरी से दिल्ली में वार्ता प्रारंभ हुई और 5 मार्च 1931 को समझौते की घोषणा हुई
- मार्च 1931 में कांग्रेस का अधिवेशन कराची में हुआ और इस समझौते को स्वीकृति प्रदान कर दी गई
- कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि गांधीजी द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए लंदन गए
गांधी-इरविन समझौता गांधी-इरविन समझौते में सरकार की ओर से किए गए वादे
कांग्रेस की ओर से गांधी जी द्वारा दिए गए आश्वासन
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द्वितीय गोलमेज सम्मेलन
(7 सितंबर 1931 से 1 दिसंबर 1931)
- इस समय भारत में इरविन के स्थान पर विलिंग्टन गवर्नर जनरल बने
- कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि गांधी जी ने इस सम्मेलन में भाग लिया
- राजपूताना नामक जहाज से घनश्याम दास बिरला, मदन मोहन मालवीय ,महादेव देसाई देवदास गांधी, प्यारेलाल और मीना बेन लंदन गए ,इसी जहाज से गांधीजी भी लंदन गए गांधीजी के समक्ष डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने यह प्रस्ताव रखा कि अनुसूचित तथा दलित वर्गों के लिए कुछ स्थान आरक्षित कर दिए जाएं, गांधीजी ने इस को अस्वीकार कर दिया
- सांप्रदायिक प्रश्न को हल करने में यह सम्मेलन विफल रहा
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन की घोषणा
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तृतीय गोलमेज सम्मेलन
(17 नवंबर 1932 से 24 दिसंबर 1932)
- यह सम्मेलन महत्वहीन रहा क्योकि यह सम्मेलन बिना किसी सर्वसम्मत निर्णय के समाप्त हो गया
सांप्रदायिक पंचाट/निर्णय (कम्युनल अवार्ड)(16 अगस्त 1932)
- भारतीय अल्पसंख्यक संप्रदायों की आपसी समस्या समझौते से हल ना कर पाने के कारण रेम्जे मैकडोनाल्ड ने सांप्रदायिक निर्णय की घोषणा की
सांप्रदायिक पंचाट
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- इस घोषणा के द्वारा विशेष हितों वाले संप्रदायों की प्रतिनिधि संख्या को बढ़ा दिया गया
- प्रत्येक अल्पसंख्याक संप्रदाय के लिए स्थान निर्धारित कर दिए गए
- अस्पृश्य जातियों को हिंदुओं से अलग मानकर उन्हें पृथक प्रतिनिधित्व दिया गया
- गांधी जी ने इस निर्णय के खिलाफ आमरण अनशन किया
- डॉक्टर अंबेडकर तथा अन्य हिंदू नेताओं के प्रयत्नों हिंदुओं और अछूतों में एक समझौता किया गया जिसको पूना पैक्ट के नाम से जाना जाता है
- इस समझौते के अनुसार व्यवस्थापिका सभा में अछूतों के स्थान हिंदुओं के अंतर्गत की सुरक्षित रखे गए
पूना पैक्ट
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- गांधी जी ने 9 मई 1933 को सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित कर दिया
- गांधी जी ने अनुभव किया कि साधारण जनता सरकार के अत्याचारों से भयभीत हो चुकी है तथा हताश होकर उसका मनोबल कम हो रहा है
1935 का भारत सरकार कानून
- 1935 के कानून द्वारा भारत में प्रांतीय स्वशासन प्रशासन की स्थापना की गई
- इस कानून द्वारा केंद्र में द्वैध शासन प्रणाली की व्यवस्था की गई
- सरकार द्वारा आश्वासन आश्वासन दिया गया कि गवर्नर दिन प्रतिदिन के शासन में भारतीय मंत्रियों के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे
- 1935 के भारत सरकार कानून के तहत 1937 में 11 प्रांतों में चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस को 6 राज्यों मद्रास, बम्बई,संयुक्त प्रदेश ,बिहार,मध्य प्रदेश और उड़ीसा में बहुमत मिला
- बंगाल और पश्चिमोत्तर प्रदेश में वह सबसे बड़ी पार्टी थी
- पंजाब और सिंध में कांग्रेस को कम सीटें मिली
मंत्रिमंडल के कार्य
- चौरी-चौरा कांड(1922) और मोपला विद्रोह (1921) में सजा काटने वाले लोगों को रिहा कर दिया गया
- कई गैर कानूनी राजनीतिक संस्थाओं को फिर से कानूनी कर दिया गया
- कम्युनिस्ट पार्टी को कानूनी नहीं किया जा सका क्योंकि उस को गैरकानूनी करार देने वाली सरकार केंद्रीय थी
मंत्रिमंडल का त्यागपत्र
- 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध आरंभ हो गया और अंग्रेजी सरकार ने बिना भारतीय मंत्रियों की सलाह के ब्रिटेन की ओर से भारत को युद्ध में सम्मिलित कर लिया
- कांग्रेस में सरकार से युद्ध के उद्देश्य को स्पष्ट करने की मांग की
- वायसराय लिनलिथगो की तरफ से कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया
- 1939 के अंत में संपूर्ण कांग्रेस मंत्रिमंडल ने अपने पदों से त्यागपत्र दे दिया
अगस्त प्रस्ताव (8 अगस्त 1940)
- 1939 ई. में विश्व युद्ध के अवसर पर कांग्रेस ने सरकार के साथ सहयोग इस आश्वासन के साथ करना चाहा कि युद्ध के तत्काल बाद भारत को स्वतंत्र कर दिया जाएगा
- कांग्रेस की इस मांग को अंग्रेजों ने ठुकरा दिया
- 8 अगस्त 1940 को वायसराय लिनलिथगो ने एक घोषणा की जिसको अगस्त प्रस्ताव कहा जाता है
- कांग्रेस ने अगस्त प्रस्ताव को ठुकरा दिया और व्यक्तिगत सत्याग्रह आरंभ कर दिया,आचार्य विनोबा भावे प्रथम सत्याग्रही चुने गए तथा दूसरे सत्याग्रही जवाहरलाल नेहरू थें
- 17 दिसंबर 1940 को व्यक्तिगत सत्याग्रह स्थगित कर दिया गया तथा दोबारा 5 जनवरी 1941 को आरम्भ किया गया
अगस्त प्रस्ताव अल्पसंख्यकों को आश्वासन दिया गया कि अंग्रेज किसी ऐसी संस्था को शासन नहीं सौंपेंगे जिसके विपक्ष में सुदृढ़ मत होगा संविधान बनाने के भारतीयों के अधिकार को स्वीकार कर लिया गया युद्ध के बाद एक संविधान सभा के निर्माण का आश्वासन दिया गया एक युद्ध सलाहकार समिति स्थापित की जाएगी जिसके सदस्य भारतीय भी होंगे भारतीय उक्त आधारों पर सरकार का सहयोग प्रदान करेंगे |
पाकिस्तान प्रस्ताव (मार्च 1940)
- 23 मार्च 1940 को मुस्लिम लीग के लाहौर वार्षिक अधिवेशन में पाकिस्तान प्रस्ताव को पास किया गया
क्रिप्स प्रस्ताव(1942)
- 7 मार्च 1942 को रंगून पर जापानियों ने अधिकार कर लिया इससे भारत पर आक्रमण का खतरा मंडराने लगा
- 11 मार्च को विंस्टन चर्चिल में युद्ध की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए सर स्टेफर्ड क्रिप्स को भारत भेजने की घोषणा की
- स्टेफर्ड क्रिप्स 23 मार्च 1942 को दिल्ली पहुंचे और अपने प्रस्ताव की घोषणा 30 अगस्त 1942 को की
- क्रिप्स योजना दो भागों में विभाजित थी जिसके प्रथम भाग में युद्ध की समाप्ति के पश्चात भारत में डोमिनियन स्थापित करना तथा दूसरे भाग में तत्कालीन परिवर्तनों की व्यवस्था थी
- गांधीजी ने क्रिप्स प्रस्ताव पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह एक पोस्ट डेटेड चेक है जिसका बैंक नष्ट होने वाला है
- यह प्रस्ताव अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान की मांग को स्वीकार करता था इसलिए कांग्रेस ने इस को अस्वीकार कर दिया
- मुस्लिम लीग ने भी प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया क्योंकि उसमें पाकिस्तान की मांग को स्पष्ट रूप से स्वीकार नहीं किया गया था
क्रिप्स प्रस्ताव युद्ध के उपरांत व्यवस्थाएं
तत्कालिक व्यवस्थाएं
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भारत छोड़ो आंदोलन (1942)
- कांग्रेस कमेटी ने भारत छोड़ो प्रस्ताव 8 अगस्त 1942 को पारित कर दिया
- भारत छोड़ो आंदोलन गांधी जी के नेतृत्व में चलाया गया
- लॉर्ड लिनलिथगो ने 9 अगस्त को सूर्योदय के पूर्व कांग्रेसी नेताओं को जेल में डाल दिया
- गांधीजी और सरोजनी नायडू को पूना के आगा खां पैलेस में कैद किया गया
- राजेंद्र प्रसाद को छोड़कर कार्यकारिणी समिति के अन्य सदस्यों को अहमदनगर के दुर्ग में नजरबंद कर दिया गया
- 9 नवंबर 1942 को जयप्रकाश नारायण 5 साथियों के साथ हजारीबाग सेंट्रल जेल से निकल भागे
इंडियन नेशनल आर्मी की स्थापना (1942)
- सुभाष चंद्र बोस ने अप्रैल 1939 में कांग्रेस कमेटी से त्यागपत्र देकर फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया
- सरकार ने जुलाई 1940 में सुभाष चंद्र बोस को कैद कर लिया
- 17 जनवरी 1941 को सुभाष चंद्र बोस कोलकाता से निकल भागे जिसका पता 10 दिन पश्चात चल सका
- आई. एन. ए. की स्थापना 1 सितंबर 1942 को हुई
- 21 अक्टूबर 1943 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस में सिंगापुर में अस्थाई भारत सरकार की स्थापना की
- नेताजी की मृत्यु एक हवाई दुर्घटना में 18 अगस्त 1945 को हो गई(विवादित)
सी. आर. फार्मूला (1944)
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वेवेल योजना(1945)
- लॉर्ड वेवेल 1944 में भारत में गवर्नर जनरल बनकर आया
- वेवेल ने भारतीय नेताओं के समक्ष एक नया हल प्रस्तुत किया जो की वेवेल योजना के नाम से जाना जाता है
- वेवेल योजना पर विचार करने के लिए 25 जून 1945 को शिमला में एक सम्मेलन बुलाया गया जिसमें कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग ने भाग लिया
- मोहम्मद अली जिन्ना ने मुस्लिम लीग को मुसलमानों की एकमात्र संस्था मानते हुए समझौता करने से इंकार कर दिया
वेवेल योजना
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प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस (1946)
- लॉर्ड वेवेल ने 1946 में कांग्रेस व मुस्लिम लीग दोनों को अंतरिम सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया
- कांग्रेस ने वेवेल के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया परंतु मुस्लिम लीग ने स्वीकार नहीं किया
- अप्रैल 1946 में दिल्ली में मुस्लिम लीग का अधिवेशन हुआ तथा 16 अगस्त 1946 को प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस मनाने की घोषणा की गई
सेना में विद्रोह(1946)
- 1946 में सैनिक-सेवा में सुविधाओं को लेकर विद्रोह हो गया
- 18 फरवरी 1946 में बम्बई में जल सेना ने खुला विरोध किया
कैबिनेट मिशन(1946)
- कैबिनेट मिशन 1946 में भारत पहुंचा
- कैबिनेट मिशन में स्टेफर्ड क्रिप्स अध्यक्ष के रूप में पैट्रिक लोरेंस(भारत सचिव), ए.वी.एलेक्जेंडर(नौसेना मंत्री) सदस्य थे
- कैबिनेट मिशन ने भारत में एक संघ राज्य की स्थापना, संविधान सभा का गठन करने तथा एक अंतरिम सरकार का गठन करने का प्रस्ताव किया
कैबिनेट मिशन
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माउंटबेटन योजना(1947)
- 20 फरवरी 1947 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली ने घोषणा की कि जून 1948 के पूर्व अंग्रेजी सरकार भारतवासियों को सत्ता हस्तांतरित कर देगी
- इस कार्य के लिए माउंटबेटन को गवर्नर जनरल बनाकर भेजा गया
- काफी सोच विचार के पश्चात माउंटबेटन ने 3 जून 1947 को भारत विभाजन की योजना प्रकाशित की
- माउंटबेटन योजना को कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग दोनों ने स्वीकार कर लिया तथा देश का विभाजन तय हो गया
- बंगाल, पंजाब में जिलों के विभाजन तथा सीमा निर्धारण का कार्य रेडक्लिफ की अध्यक्षता में एक कमीशन के अंतर्गत रखा गया
- इंग्लैंड की सरकार ने 16 जुलाई 1947 को इस प्रस्ताव को पास कर दिया
- 15 अगस्त 1947 को भारत और पाकिस्तान को दो डोमिनियन में बांट दिया गया
माउंटबेटन योजना
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वामपंथ
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महत्वपूर्ण तथ्य:-
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना | 28 दिसंबर 1885 |
स्वदेशी और बहिष्कार संकल्प | 1905 |
मुस्लिम लीग की स्थापना | 1906 |
गदर आंदोलन | 1913 |
होम रूल मूवमेंट | 1916 |
चंपारण सत्याग्रह | 1917 |
खेडा सत्याग्रह | 1917 |
अहमदाबाद मिल स्ट्राइक | 1918 |
रोलेट एक्ट सत्याग्रह | 1919 |
असहयोग आंदोलन | 1920 |
सविनय अवज्ञा आंदोलन | 1930 |
भारत छोड़ो आंदोलन | 1942 |
धन्यवाद
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