बौद्ध धर्म
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तो चलिए दोस्तों शुरू करते हैं
बौद्ध धर्म से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य
- बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थें
- गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व कपिलवस्तु के लुंबिनी नामक स्थान पर हुआ था
- गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोधन था
- गौतम बुद्ध के पिता शुद्धोधन शाक्य गण के प्रमुख थे
- गौतम बुद्ध की माता का नाम महामाया(माया देवी) था
- गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था
- गौतम बुद्ध का विवाह 16 वर्ष की आयु में यशोधरा के साथ हुआ था
- गौतम बुद्ध के पुत्र का नाम राहुल था
- गौतम बुद्ध ने 29 वर्ष की आयु में घर का त्याग कर दिया था
- अशोक के रुमनदई अभिलेख में गौतम बुद्ध के जन्म स्थान के बारे में वर्णन है, इस अभिलेख के अनुसार गौतम बुद्ध का जन्म लुंबिनी में हुआ था
- गौतम बुद्ध को लाइट ऑफ एशिया भी कहा जाता है जिसका अर्थ है एशिया का ज्योति पुंज
- द लाइट ऑफ एशिया सर एडविन अर्नाल्ड द्वारा लिखित है, यह ललित विस्तार पर आधारित है
- सिद्धार्थ के प्रथम गुरु आलार कलाम थे, आलार कलाम से गौतम बुद्ध ने सांख्य दर्शन की शिक्षा प्राप्त की थी
- 6 वर्ष की तपस्या के बाद 35 वर्ष की आयु में वैशाख पूर्णिमा की रात्रि में निरंजना या फल्गु नदी के किनारे पीपल के पेड़ के नीचे सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्ति हुई, ज्ञान प्राप्ति के पश्चात सिद्धार्थ बुद्ध के नाम से पहचाने गए
- जिस स्थान पर बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई वह स्थान बोधगया कहलाया
- गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया, सारनाथ में दिए गए प्रथम उपदेश को मृग चक्र द्वारा चित्रित किया गया
- गौतम बुद्ध के पहले उपदेश को धर्म चक्रप्रवर्तन भी कहा गया
- गौतम बुद्ध ने अपने सर्वाधिक उपदेश श्रावस्ती में दिए जो कि कौशल की राजधानी थी
- गौतम बुद्ध ने पाली भाषा का प्रयोग किया
- गौतम बुद्ध को शाक्यमुनि बुद्ध भी कहा गया है
- गौतम बुद्ध ने अपने उपदेश जिन प्रमुख राज्यों में दिए वह क्रमशः वैशाली, कौशांबी तथा कौशल थें
- गौतम बुद्ध ने सुभद्र को अपना अंतिम उपदेश दिया
- गौतम बुद्ध को 80 वर्ष की आयु में मल गणतंत्र की राजधानी कुशीनगर में महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई
- बौद्ध शिक्षा के तीन प्रमुख केंद्रों में नालंदा, विक्रमशिला और वल्लभी शामिल है, नालंदा बिहार में, वल्लभी गुजरात में तथा विक्रमशिला बिहार में स्थित था
- नालंदा विश्वविद्यालय को कुमारगुप्त प्रथम ने बनवाया, अब नव नालंदा महाविहार बौद्ध धर्म के अध्ययन का आधुनिक केंद्र है, यहां पर पाली और बौद्ध अध्ययन अनुसंधान किया जाता है
- बौद्ध संघ में सबसे पहले शामिल होने वाली महिला महाप्रजापति गौतमी को गौतम बुद्ध ने वैशाली में संघ में शामिल होने की अनुमति प्रदान की थी
- गौतम बुद्ध की प्रसिद्ध शिष्या आम्रपाली थी
- निर्वाण बौद्ध धर्म का सर्वोच्च लक्ष्य है
- बौद्ध धर्म में मध्य मार्ग को अपनाया गया है
- जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म दोनों ही धर्मों ने वेदों की अपौरुषेयता तथा वैदिक कर्मकांडों का विरोध किया
- क्षणिक-वाद बौद्ध धर्म के कुछ सिद्धान्तों में से एक है
- बौद्ध धर्म का प्रसार आम लोगो तक होने के पीछे पाली भाषा का बड़ा योगदान था
सिद्धार्थ को गौतम बुद्ध बनाने में मनुष्य की 4 अवस्थाओं का बहुत बड़ा योगदान था : –
पहली अवस्था – वृद्ध मनुष्य
दूसरी अवस्था – बीमार मनुष्य
तीसरी अवस्था – शव
चौथी अवस्था – संन्यासी
जैन धर्म के सिद्धांत |
बौद्ध धर्म के प्रतीक चिन्ह
गौतम बुद्ध से जुड़े हुए बौद्ध धर्म के प्रतीकों में निम्न प्रतीक शामिल है:-
कमल और सांड | जन्म |
घोड़ा | गृह त्याग |
पीपल या बोधि वृक्ष | ज्ञान |
पद-चिन्ह | निर्वाण |
स्तूप | मृत्यु |
बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य
गौतम बुद्ध के उपदेशों में चार आर्य सत्य प्रमुख रहे है:-
1.दुख :- संसार में सर्वत्र दुख है
2.दुख समुदाय :- दुख का कारण है
3.दुख निरोध :- दुख का अंत संभव है
4.दुख निरोध गामिनी प्रतिपदा :– दुख के कारण के विनाश का उपाय अष्टांगिक मार्ग ही है
बौद्ध धर्म का अष्टांगिक मार्ग
दुखों से मुक्त होने के लिए गौतम बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग पर चलने की बात कही
यह मार्ग है क्रमशः-
1.सम्यक् दृष्टि
2.सम्यक् संकल्प
3.सम्यक् वाणी
4.सम्यक् कर्म
5.सम्यक् जीविका
6.सम्यक् प्रयत्न
7.सम्यक् स्मृति
8.सम्यक् समाधि
गौतम बुद्ध के अनुसार इन अष्टांग मार्गों पर चलने से मनुष्य को निर्वाण प्राप्त होता है
निर्वाण का अर्थ है जीवन मरण किस चक्र से मुक्ति पा जाना
बौद्ध धर्म की विशेषताएँ
- बौद्ध धर्म की प्रमुख विशेषता इसका आत्मा एवं ईश्वर के अस्तित्व को नकारना हैं
- बौद्ध धर्म जाति प्रथा को नहीं मानता था ,बौद्ध संघ में लोगो के बीच कोई जातिगत भेदभाव नहीं होता था
- महिला एवं पुरुष को बराबरी का दर्जा हासिल था
बौद्ध धर्म के त्रिरत्न
बौद्ध धर्म के त्रिरत्नओं में हैं:-
1.बुद्ध
2.धम्म
3.संघ
बौद्ध धर्म के नियम
सरल शब्दों में बौद्ध धर्म के कुछ प्रमुख नियम निम्न: हैं :-
1.गलत संकल्प या विचार मत करो
2.सत्य बोलो
3.मधुर बोलो
4.सदाचारी बनो
5.अपने जीवन यापन के लिए सही रास्तों का सहारा लो
6.चित्त को एकाग्र रखो
बौद्ध धर्म की तीन धार्मिक पुस्तकें
बौद्ध साहित्य को त्रिपिटक ( गौतम बुद्ध की शिक्षाओं का संकलन ही त्रिपिटक कहा जाता है )कहा जाता है,त्रिपिटक पाली भाषा में है
त्रिपिटक
त्रिपिटक तीन भागों में विभाजित है ( बौद्ध धर्म की तीन धार्मिक पुस्तकें ) :-
1.विनय सूत्र :- संघ-नियम तथा दैनिक आचार-विचार से सम्बंधित
2.अभिधम्मा सूत्र :- दार्शनिकता से सम्बंधित
3.सुत्त पिटक :- सिद्धांत एवं उपदेश से सम्बंधित ( प्रसिद्ध बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तरनिकाय सुत्त पिटक से सम्बंधित हैं )
गौतम बुद्ध की भूमि स्पर्श मुद्रा
गौतम बुद्ध की एक प्रसिद्ध मुद्रा भूमि स्पर्श मुद्रा सारनाथ में है, गौतम बुद्ध की भूमि स्पर्श मुद्रा से तात्पर्य अपनी सुचिता और शुद्धता का साक्षी होने के लिए धरती का आह्वान करना है यह मूर्ति गुप्त काल में निर्मित की गई थी
बौद्ध सभाएं
समय-समय पर बौद्ध सभाएं हुई उनका वर्णन निम्न प्रकार है:-
प्रथम बौद्ध सभा:-
483 ईसा पूर्व राजगृह या राजगीर में हुई इस सभा की अध्यक्षता महाकश्यप ने की यह सभा अज्ञात शत्रु के शासनकाल में हुई, राजगृह या राजगीर में सप्तपर्णी गुफा स्थित है
विश्व शांति स्तूप राजगीर की पहाड़ियों पर स्थित है
द्वितीय बौद्ध सभा:-
383 ईसा पूर्व में कालाशोक के शासनकाल में वैशाली नामक स्थान पर हुई इस सभा की अध्यक्षता सुबुकामी ने की
तृतीय बौद्ध सभा:-
अशोक के शासनकाल में 255 ईसा पूर्व पाटलिपुत्र में हुई इस बौद्ध सभा की अध्यक्षता मोग्गलिपुत्त तिस्स ने की | महान मौर्य शासक अशोक ने पाटलिपुत्र में अशोका राम विहार का निर्माण कराया था
चतुर्थ बौद्ध सभा:-
- कनिष्क के शासनकाल में कुंडलवन कश्मीर में 102 ईस्वी में हुई इसकी अध्यक्षता वसुमित्र ने की,उपाध्यक्षता अश्वघोष ने की , अश्वघोष ने ही बुद्ध-चरित्र की रचना की
- इसी बौद्ध सभा के बाद बौद्ध धर्म दो भागों में 1.हीनयान एवं 2.महायान में विभक्त हो गया
- महायान में गौतम बुद्ध को देवता माना गया,मूर्ति पूजा की शुरूवात बौद्धों द्वारा की गयी,महायान की भाषा संस्कृत थी
- हीनयान में गौतम बुद्ध को एक महापुरुष माना गया,
- हीनयान शाखा का शैलकृत चैत्यगृह कार्ले {पुणे (महाराष्ट्र)} में स्थित है,हीनयान की भाषा पाली थी |
- अन्य महत्वपूर्ण शाखा वज्रयान है
- कनिष्क के दरबारी नागार्जुन ने चीन की यात्रा कर वहां बौद्ध धर्म का प्रचार किया,इन्हीं नागार्जुन ने शून्यवाद मत का प्रवर्तन किया शून्यवाद को ही माध्यमिक मत भी कहा गया
बौद्ध चैत्य
उपासना केंद्रों को चैत्य कहा गया,शव अवशेषो के ऊपर समाधि बनाई गयी कालांतर में ये स्थान उपासना के केंद्र बन गए,यही चैत्य कहलाए ,इनके समीप ही बौद्धों के रहने के लिए आवास बनाए गए जो विहार कहलाए
जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म में अंतर
1.बौद्ध धर्म अनात्मवादी हैं वही जैन धर्म आत्मवादी हैं
2.बौद्ध धर्म मध्यमार्गी है वही जैन धर्म अहिंसावादी है
3.बौद्ध धर्म निर्वाण में तथा जैन धर्म मोक्ष में विश्वास रखता है
बौद्ध धर्म के पतन के कारण
बौद्ध धर्म शुरुवात में सुधार की भावना से प्रेरित था, जिस बुराइयों के खिलाफ इसने संघर्ष किया बाद में यह उन्हीं बुराइयों में शामिल होने लगा, बौद्ध धर्म मुख्य धारा से कटने लगा एवं कालांतर में पाली भाषा को छोड़ कर संभ्रात भाषा संस्कृत को अपनाने लगा, बाद में मूर्ति पूजा भी आम होने लगी, गौतम बुद्ध के द्वारा प्रतिबंधित की गयी प्रथाओं को अपनाया जाने लगा, अपार धन संपत्ति के कारण बौद्ध मठ आक्रमणकारियो द्वारा निशाना बनाये गए, इन सब प्रमुख कारणों से ही बौद्ध धर्म बारहवीं शताब्दी तक भारत से लुप्तप्राय हो गया
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